कुछ लोग मानते हैं कि वीगन बनना एक “अत्यधिक” या “चरम” फैसला है। लेकिन अगर हम इस बात पर विचार करें कि पशुपालन उद्योग का पशुओं, पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है, तो शायद हमारी राय बदल जाए…
पशुपालन उद्योग : जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण
बाढ़, गर्मी की लहरें और सूखा, पहले ही हमारी ज़िंदगी पर बहुत बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। जैसे-जैसे जलवायु संकट बढ़ता जाएगा, यह हमारी दुनिया को दर्द और तबाही की ओर ले जाएगा। यह लोगों को मार देगा, वे अपने घरों से बेघर हो जाएंगे, और बहुत से लोग जलवायु शरणार्थी बनने पर मजबूर होंगे। पूरी की पूरी पारिस्थितिकियाँ तबाह हो जाएंगी, और अनगिनत प्रजातियाँ हमेशा के लिए मिट जाएंगी। हमें इसके खिलाफ़ अभी कदम उठाने की ज़रूरत है और हमें उन उद्योगों को रोकना होगा जो पृथ्वी को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुँचा रहे हैं। इनमें पशुपालन उद्योग भी शामिल है। यह उद्योग जलवायु संकट की सबसे बड़ी वजह है और यह उद्योग अकेले उन सभी वाहनों—कार, बस, जहाज, हवाई जहाज, ट्रक और ट्रेन से निकलने वाले ईंधन की तुलना में बहुत अधिक प्रदूषण फैलाता है।
पशुपालन उद्योग वनों की कटाई का मुख्य कारण है
पशुपालन उद्योग वनों की कटाई का सबसे बड़ा कारण है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पौधों से बने उत्पादों की तुलना में पशु उत्पादों को बनाने में बहुत अधिक भूमि की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि चरागाह बनाने या मांस के लिए बढ़े किये गए पशुओं के लिए चारा उगाने के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों को काटकर खत्म कर दिया जाता है। कई लोग सोयाबीन को जंगलों के विनाश का दोषी मानते हैं। लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि सोयाबीन का अधिकांश हिस्सा सीधे इंसानों के लिए नहीं, बल्कि उन पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल होता है, जिन्हें मांस व्यापार के लिए बढ़ा किया और मारा जाता है, खासतौर पर मुर्गियों के लिए।
पशुपालन उद्योग प्रजातियों के विलुप्त होने का बड़ा कारण है
जंगलों की कटाई केवल पेड़ों का विनाश नहीं है; यह जंगली जानवरों के घरों का विनाश है। 1970 से, धरती से लगभग 60 प्रतिशत जानवरों की आबादी खत्म हो चुकी है। और इसका सबसे बड़ा कारण है पशुओं की खेती अर्थात पशुपालन उद्योग। हमारे मांस आधारित खानपान का सीधा असर उन प्रजातियों पर पड़ रहा है, जिन्हें हमने न तो अब तक देखा है, न पहचाना है, और न ही उनका कोई नाम रखा है। अनगिनत जानवर और जीव-जंतु, जो इस पृथ्वी का हिस्सा हैं, हर दिन विलुप्त हो रहे हैं। हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि वैज्ञानिक इसे छठा सामूहिक विलुप्तिकरण (मास एक्सटिंक्शन) कह रहे हैं।
पशुपालन उद्योग पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है
पशुपालन उद्योग हमारी वायु, भूमि और जल स्रोतों का प्रमुख प्रदूषक है। धरती पर अरबों पशु हैं जिन्हें मांस के लिए बढ़ा किया जा रहा है, और ये पशु प्रतिदिन भारी मात्रा में अपशिष्ट पैदा करते हैं। यह कचरा इतनी बड़ी मात्रा में होता है कि इसे ज़मीन में खाद के रूप में पूरी तरह से अवशोषित करना असंभव है। इसलिए इसे बड़े-बड़े टैंकों और लैगून (कृत्रिम तालाबों) में जमा किया जाता है, लेकिन अक्सर ये टैंक और कृत्रिम तालाब रिसने लगते हैं, जिससे पीने के पानी के स्रोत दूषित हो जाते हैं और जलीय जीव-जंतुओं का जीवन खतरे में पड़ जाता है। इस अपशिष्ट (स्लरी) और औद्योगिक खादों के कारण महासागर के बड़े हिस्से पूरी तरह बंजर हो जाते हैं। इन हिस्सों को “डेड ज़ोन” कहा जाता है क्योंकि वहाँ कोई भी जलीय जीव जीवित नहीं रह सकता।
पशुपालन उद्योग पृथ्वी के बहुमूल्य संसाधनों को बर्बाद कर रहा है
1 किलो मांस तैयार करने के लिए 3 किलो अनाज की ज़रूरत होती है। यह दर्शाता है कि मांस उत्पादन हमारी धरती के संसाधनों को इस्तेमाल करने का एक बेहद अक्षम तरीका है। इसके साथ ही, पशुपालन उद्योग पानी की भी भारी बर्बादी करता है। पानी, जो जीवन के लिए सबसे अनमोल और ज़रूरी संसाधन है, उसे इतनी लापरवाही से गँवाना हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए संकट पैदा कर सकता है। अगर हम सभी पौधों पर आधारित भोजन अपनाएँ, तो हम कृषि के लिए उपयोग की जाने वाली वैश्विक भूमि को 75% तक घटा सकते हैं। इसका मतलब है कि हम न केवल हर इंसान को खाना खिला सकते हैं, बल्कि बड़े पैमाने पर भूमि को प्रकृति के पास लौटा सकते हैं।
पशुपालन उद्योग जीवों को अकल्पनीय पीड़ा देता है
जो कोई भी कभी पशुपालन उद्योग का दौरा करता है, वह इस अमानवीय व्यवस्था को सही ठहराना असंभव पाता है। उसके अंदर, संवेदनशील प्राणी हैं—जो दर्द, प्यार, डर और खुशी को उसी तरह महसूस करते हैं जैसे हमारे प्यारे कुत्ते और बिल्लियाँ करते हैं। ये मासूम प्राणी पिंजरों में कैद किए जाते हैं या हजारों अन्य जानवरों के साथ अपनी ही गंदगी में खड़े रहने के लिए मजबूर होते हैं। वे कभी ताज़ी हवा में सांस नहीं ले पाते, न ही उन्हें खुलकर घूमने, मिट्टी खोदने, खेलने या अपने पंख फैलाने का मौका मिलता है। इनमें से कई गंदगी और अत्यधिक दयनीय परिस्थितियों में जीवित नहीं रह पाते और बिना किसी देखभाल के मर जाते हैं। जो किसी तरह इन भयानक हालातों में जीवित रह जाते हैं, उनके लिए आगे केवल एक डरावना सफ़र इंतज़ार कर रहा होता है, वह है बूचड़खाने तक का सफ़र।
पशुपालन से पैदा होता मानव अस्तित्व का खतरा
गहन पशुपालन उद्योग ऐसे गंदे और तनावपूर्ण स्थान होते हैं जहाँ पशुओं को एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं, ताकि वे कुछ हफ्तों तक जीवित रह सकें, जब तक उनका वध न हो जाए। ये दवाएँ बीमारियों को रोकने के लिए नहीं, बल्कि उन भयानक परिस्थितियों में जानवरों को ज़िंदा रखने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। लेकिन इस व्यापक एंटीबायोटिक्स के उपयोग का एक गंभीर परिणाम हो रहा है, ऐसे बैक्टीरिया उत्पन्न हो रहे हैं जो इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधी (रेसिस्टेंट) बन चुके हैं। इसका मतलब है कि अब ये एंटीबायोटिक्स बीमारियों पर असर नहीं कर पा रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की महानिदेशक मार्गरेट चैन ने इसे चेतावनी देते हुए कहा था, “हम एक ऐसे युग की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ एंटीबायोटिक्स काम नहीं करेंगी। आम संक्रमण भी लाइलाज हो जाएंगे और फिर से लोगों को अनियंत्रित होकर मारने लगेंगे।”
पशु उत्पाद मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं
पशु उत्पादों का सेवन हृदय रोग और टाइप 2 मधुमेह होने का जोखिम बढ़ाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने तो सभी प्रसंस्कृत मांस (प्रोसेस्ड मीट) को “कैंसरकारी” (कार्सिनोजेनिक) घोषित कर दिया है, और लाल मांस (रेड मीट) को “संभवतः कैंसरकारी” की श्रेणी में रखा है। क्या मांस, दूध, और अंडों के लिए पशुओं को बढ़ा करना और उनका शोषण करना इतना ज़रूरी है कि हम अपना और अपनी आने वाली पीढ़ियों का स्वास्थ्य खतरे में डाल दें? आज हमारे पास स्वादिष्ट और पौष्टिक पौधों से बने मांस और अन्य उत्पाद आसानी से उपलब्ध हैं, जो न केवल स्वास्थ्य के लिए बेहतर हैं बल्कि जानवरों और पर्यावरण को भी बचाते हैं।
दूसरी ओर, पौधों पर आधारित भोजन हमारे लिए, हमारी पृथ्वी के लिए, और जानवरों के लिए एक वरदान है।
अगर हम पौधों पर आधारित आहार अपनाएँ, तो हमें 75 प्रतिशत कम भूमि की आवश्यकता होगी। इसका मतलब है कि जो ज़मीन हमने पशुपालन उद्योग के लिए छीनी है, उसे वापस प्रकृति को लौटाया जा सकता है। जंगल फिर से उग सकते हैं, और जंगली जानवर बिना किसी डर के अपनी प्राकृतिक जगह पर फल-फूल सकते हैं।
पौधों पर आधारित आहार जलवायु परिवर्तन को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह हमारी पृथ्वी को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित और सुंदर बनाए रखने का सबसे प्रभावी तरीका है। साथ ही, हम पूरी दुनिया के हर इंसान को पौष्टिक और भरपेट खाना खिला सकते हैं और भविष्य में बढ़ती आबादी को भी आसानी से भोजन उपलब्ध करा सकते हैं।
हम समुद्रों की रक्षा कर सकते हैं, जलीय जीवों के अंधाधुंध शिकार को रोक सकते हैं जिससे उनकी प्रजातियाँ खत्म होने की कगार पर न पहुँचें। साथ ही, समुद्र में प्लास्टिक जाने से बचाया जा सकता है, जो मुख्य रूप से मछली पकड़ने वाले जालों से आता है।
अगर हम पौधों पर आधारित भोजन अपनाते हैं, तो हम न केवल करुणामय जीवन जी सकते हैं, बल्कि उन मासूम और कमज़ोर जीवों को भी अनावश्यक और अन्यायपूर्ण पीड़ा से बचा सकते हैं।
साथ ही, यह आहार हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह और कुछ प्रकार के कैंसर से बचने में हमारी अधिक मदद करताहै।
इतनी सारी सच्चाइयों को जानने के बाद, क्या वीगनवाद आपको अभी भी चरमवाद लगता है?
तो क्यों न इसे खुद आज़माएँ? वीगन बनकर देखें और खुद महसूस करें कि कैसे एक छोटे से बदलाव से आपकी ज़िंदगी और इस पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव की ज़िंदगी बेहतर हो सकती है।
अनस्प्लैश पर क्लेम ओनोजेघुओ द्वारा फोटो