पृथ्वी के लिए उम्मीद: बीते 10 सालों का योगदान

पिछले एक दशक में, कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों और दुनियाभर के करुणामयी लोगों ने जलवायु संकट के बढ़ते प्रमाणों को उजागर किया है। बढ़ते तापमान और बढ़ते समुद्रों से लेकर विलुप्त होते वन्यजीवों तक, विश्व की तस्वीर अत्यंत चिंताजनक है। फिर भी, इस संकट के बीच, बदलाव की कुछ किरणें दिखाई देती हैं। हालाँकि हमें अभी भी लंबा रास्ता तय करना है, हम इन सकारात्मक बदलावों को प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि हम उन सभी को प्रोत्साहित, प्रेरित और उत्साहित कर सकें जो प्राकृतिक दुनिया की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं।

मांस की खपत में भारी गिरावट

पशुपालन उद्योग अब भी वनों की कटाई, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जल प्रदूषण और वन्यजीवों के विनाश का एक प्रमुख कारण बना हुआ है। यदि हमें पृथ्वी की रक्षा करनी है, तो इस खतरनाक उद्योग पर नियंत्रण पाना आवश्यक है। अच्छी खबर यह है कि इसके खिलाफ कदम उठाने के संकेत अब नज़र आने लगे हैं।

जबकि बड़ी कृषि कंपनियां अपने उत्पादों को उभरती अर्थव्यवस्थाओं में जोर-शोर से बढ़ावा दे रही हैं, तीन देश : न्यूजीलैंड, कनाडा और स्विट्ज़रलैंड अब “पीक मीट” की स्तिथि तक पहुंच चुके हैं, “पीक मीट” एक आर्थिक शब्द है जो यह दर्शाता है कि किसी देश में मांस खाने की आदत पहले बढ़ती है, लेकिन एक समय के बाद, यह घटने लगती है क्योंकि लोग कम मांस खाने लगते हैं।। जब कोई देश “पीक मीट” तक पहुंचता है, तो चाहे लोगों की आमदनी बढ़ती रहे, लेकिन मांस खाने की मात्रा और नहीं बढ़ती। ये देश इस बदलाव के शुरुआती उदाहरण हैं, और 2025 तक यूरोप और अमेरिका के “पीक मीट” तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है। इन सफलताओं के पीछे लाखों लोगों की सामूहिक कोशिशें हैं—चाहे वे फ्लेक्सिटेरियन हों, रिड्यूसिटेरियन, शाकाहारी, या पूरी तरह से वीगन। ये लोग इस बात को समझ रहे हैं कि हम जो भोजन चुनते हैं, उसका क्या प्रभाव पड़ता है इसीलिए वे अपने खाने की आदतों में बदलाव कर रहे हैं।

सकारात्मक रूप से, अगले दस वर्षों में बीफ के उपभोग में तेजी से गिरावट देखी जा सकती है, क्योंकि बीफ खाने वालों और न खाने वालों के बीच बड़े जनसांख्यिकीय अंतर हैं। क्योंकि बीफ उत्पाद पर्यावरण के लिए सबसे अधिक विनाशकारी हैं, यह हमारी पृथ्वी के लिए बेहद सकारात्मक खबर है, लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है उस परिवर्तन की, जिसकी सच में ज़रूरत है। डेयरी, अंडे, दूसरे जानवरों के मांस से पृथ्वी पर जो पर्यावरणीय प्रभाव पड़ता है, इस मुद्दे के प्रति जागरूकता अभी भी आवश्यक स्तर तक नहीं पहुंची है और न ही इस मुद्दे पर जोर-शोर से चर्चा हुई है। तो सोचने के लिए यह एक महत्वपूर्ण बात है : सोया दूध, गाय के दूध की तुलना में एक-तिहाई से भी कम उत्सर्जन करता है, और टोफू; चिकन की तुलना में एक-तिहाई से कम उत्सर्जन करता है और यह बीफ से 31 गुना कम हानिकारक है।

नवीकरणीय ऊर्जा का उदय

यह बदलाव उतनी जल्दी नहीं हुआ जितनी जल्दी हमने उम्मीद की थी, लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा अब तेजी से बढ़ रही है। क्योंकि अब यह ऊर्जा जीवाश्म ईंधनों से सस्ती हो चुकी है, इसीलिए यह बदलाव और तेज गति पकड़ेगा। यह एक स्पष्ट संकेत है कि बाजार अब एक हरित भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं। विश्व आर्थिक मंच का अनुमान है कि 2050 तक, सौर ऊर्जा अमेरिका के लिए प्रमुख ऊर्जा स्रोत बन जाएगी, जो देश की 50 प्रतिशत से अधिक बिजली की आपूर्ति करेगी। 2021 में, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर की कुल बिजली के उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान लगभग 30 प्रतिशत था। वे यह भी अनुमान लगाते हैं कि 2028 तक दुनिया की 42 प्रतिशत ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से आएगी।

छोटे राष्ट्र भी यह उदाहरण पेश कर रहे हैं कि जब नवीकरणीय ऊर्जा की सही तरीके से योजना बनाई जाती है और उसे लागू किया जाता है, तो यह सभी के लिए भरोसेमंद बिजली प्रदान कर सकती है। 2023 में, पुर्तगाल पहला ऐसा देश बन गया जो पूरी तरह से एक हफ्ते तक केवल नवीकरणीय ऊर्जा पर चला। यह एक अद्भुत उपलब्धि है!

पशुपालन उद्योग के विनाशकारी प्रभावों के प्रति जागरूक होती सरकारें

पशुपालन उद्योग को पारंपरिक रूप से सरकारों का संरक्षण मिलता रहा है, चाहे इस उद्योग का पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता रहे। सब्सिडी, बाजार संरक्षण और कर (टैक्स) छूट जैसी नीतियाँ इस उद्योग को लम्बे समय से सुरक्षा एवं मजबूती देती रही हैं। हालाँकि, अधिक प्रगतिशील सरकारें अब ऐसी नीतियाँ बनाने लगी हैं जो पशुपालन उद्योग के पर्यावरण पर होने वाले विनाशकारी प्रभावों को सही रूप में दर्शाती हैं।

डेनमार्क में अब डेयरी किसानों को हर साल प्रति गाय 672 क्रोन (लगभग $96) का कर देना होगा, जो उनकी गायों से उत्पन्न होने वाले उत्सर्जन के लिए लगाया जाएगा। यह दुनिया का पहला ऐसा कर है, जो कृषि क्षेत्र में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से लागू किया गया है। साथ ही, इस पहल में डेनमार्क सरकार ने पर्यावरण के अनुकूल पौधों पर आधारित भोजन को समाज में एकीकृत करने का खाका शामिल किया है। स्विट्ज़रलैंड ने मांस उत्पादों पर आयात कर लागू किया है, जिसके परिणामस्वरूप हाल के वर्षों में प्रति व्यक्ति मांस खपत में कमी आई है। जलवायु संकट पहले से ही हमारे सामने है, ऐसे में यह बेहद ज़रूरी है कि अधिक से अधिक देश स्विट्ज़रलैंड जैसे कदम उठाएँ।

पौधे-आधारित और प्रयोगशाला में तैयार मांस का विस्तार

पिछले दस वर्षों में पौधे-आधारित और प्रयोगशाला में तैयार मांस उत्पादों में अद्भुत उछाल देखा गया है। इन तकनीकों में पारंपरिक पशुपालन उद्योगों को पूरी तरह ख़त्म करने की क्षमता है, जिससे पृथ्वी के सबसे अधिक पर्यावरण-विनाशकारी उद्योगों में से एक उद्योग को समाप्त किया जा सकता है। हर गुज़रते वर्ष के साथ, हम इस लक्ष्य के और करीब पहुँच रहे हैं! 

अब बर्गर, सॉसेज, नगेट्स, ग्राउंड मीट और अन्य उत्पाद इस तरह बनाए जा रहे हैं जो स्वाद में बिल्कुल जानवरों के मांस जैसे हैं, लेकिन पर्यावरण को ये मांस उत्पादों की तुलना में बहुत कम ही नुकसान पहुँचाते हैं। अमेरिकी कंपनी बियॉन्ड मीट, पौधों पर आधारित बर्गर पैटी बनाती है, जो 90 प्रतिशत कम  ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है, 97 प्रतिशत कम भूमि और पानी का उपयोग करता है, और एक मानक बीफ बर्गर की तुलना में 37 प्रतिशत कम गैर-नवीकरणीय ऊर्जा की खपत करता है। हर वह व्यक्ति जो बीफ बर्गर के बजाय बियॉन्ड मीट के बर्गर चुनता है, वह अपने कार्बन पदचिन्ह को उल्लेखनीय रूप से कम करता है। 

संवर्धित मांस और सटीक किण्वन (प्रिसीजन फर्मेंटेशन) तकनीकों में ज़बरदस्त प्रगति हुई है, और इन क्षेत्रों में सरकारों द्वारा निवेश लगातार बढ़ रहा है। सिंगापुर ने हाल ही में सस्ते दामों पर प्रयोगशाला में तैयार चिकन उत्पादों की बिक्री की अनुमति दी है। अगर सरकारें इन नए तरीकों का समर्थन करती रहें, तो संवर्धित मांस की तकनीकें हमारे जीवन में बड़े सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं।

इतिहास में सबसे बड़ा वृक्षारोपण अभियान

पिछले दस वर्षों में, जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए पेड़ लगाना सबसे प्रभावी साधनों में से एक माना गया। इस दौरान दो ऐतिहासिक घटनाएँ भी हुईं, जब देशों ने कार्बन संग्रहण (कार्बन कैप्चर) को बेहतर बनाने के लिए वृक्षारोपण कार्यक्रम शुरू किए। 2016 में, भारत में लगभग 10 लाख स्वयंसेवकों ने 49.3 मिलियन (4.93 करोड़) पेड़ लगाए। यह विश्व रिकॉर्ड ज्यादा समय तक नहीं टिक सका, क्योंकि इथियोपिया ने एक ही दिन में 35 करोड़ (350 मिलियन) पेड़ लगाकर इस रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया

वृक्षारोपण, जब जैव विविधता, स्थानीय प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र को ध्यान में रखकर किया जाए, तो यह जलवायु संकट से मुकाबला करने का सबसे शक्तिशाली उपाय बन सकता है। उम्मीद है कि अगले दशक में इथियोपिया का रिकॉर्ड टूटेगा और हमारी पृथ्वी के और भी हिस्से हरियाली से भर जाएंगे।

एकल-उपयोग प्लास्टिक (सिंगल यूज़ प्लास्टिक) पर लगाम लगाने के प्रयास 

केवल एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक हमारी पृथ्वी की जैव विविधता के लिए अभिशाप बन गए हैं। प्लास्टिक उत्पाद, जैसे थैलियाँ, स्ट्रॉ, चम्मच, और खाद्य पैकेजिंग, नदियों और महासागरों में पहुँच जाते हैं। वहाँ वे जंगली जानवरों के गले में फंसकर उनका दम घोंटते हैं और पारिस्थितिक तंत्र को प्रदूषित करते हैं। माइक्रोप्लास्टिक (जो प्लास्टिक के टूटने से बनते हैं)—ने हमारी पृथ्वी के हर हिस्से को प्रदूषित कर दिया है। मरीआना ट्रेंच की गहराई से लेकर माउंट एवरेस्ट की चोटी तक, और यहाँ तक कि ये हमारे शरीर के अंदर भी पाए जाते हैं। इस भयानक प्रदूषण को खत्म करने का काम धीमी गति से आगे बढ़ा है, लेकिन अब सकारात्मक बदलाव के संकेत स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं।

2002 में बांग्लादेश पहला देश बना जिसने प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाया। तब से अब तक, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, 91 देशों ने इस दिशा में कदम उठाए हैं। केन्या में, प्लास्टिक बैग का निर्माण, उपयोग या आयात करना अवैध है। हमें मालूम है कि ऐसे कदम प्रभावी होते हैं। चाहे प्रतिबंध लगाया जाए या शुल्क लगाया जाए, इस तरह के कदम प्लास्टिक के उपयोग को प्रभावशाली ढंग से कम करते हैं

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए जहाँ प्रतिबंध और शुल्क मददगार हैं, वहीं हजारों दयालु लोगों और संगठनों ने नियमित रूप से समुद्र तटों को साफ करने और महासागरों से प्लास्टिक हटाने के लिए पहल की है। मुंबई का वर्सोवा बीच, स्वच्छता का प्रतीक बन गया है, क्योंकि स्थानीय निवासियों ने समुद्रतट से 400 टन से ज़्यादा प्लास्टिक इकट्ठा कर इसे स्वच्छता का आदर्श बना दिया है। नीदरलैंड्स की “द ओशन क्लीनअप” जैसी स्टार्टअप कंपनियाँ ग्रेट पैसिफिक गारबेज पैच को साफ़ करने का साहसिक कदम उठा रही हैं। 4ocean जैसे कई अन्य गैर-लाभकारी संगठन महासागर से निकाले गए प्लास्टिक से उत्पाद बनाते हैं, ताकि इस समस्या के प्रति जनता में जागरूकता बढ़ाई जा सके।

वीगनिक खेती का बढ़ता प्रचलन 🌱

वीगनिक खेती एक ऐसी खेती है जिसमें जानवरों से जुड़ी किसी भी चीज़ का उपयोग नहीं किया जाता। इसमें गोबर, हड्डियों का चूर्ण, दूध, या किसी भी पशु उत्पाद का इस्तेमाल नहीं होता। इसके बजाय, फसल उगाने के लिए पौधों से बने खाद, जैविक पदार्थ और प्राकृतिक तरीके अपनाए जाते हैं। वीगनिक खेती पद्धतियाँ, जो अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, उसने पिछले एक दशक में काफी लोकप्रियता हासिल की है। छोटे स्तर के कई किसान अब पशु उत्पादों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग छोड़कर अधिक संधारणीय कृषि पद्धतियों को अपना रहे हैं।

बड़े पैमाने पर एकल फसल खेती हमारी पृथ्वी को गंभीर नुकसान पहुँचा रही है। यह मिट्टी की सेहत को खराब करती है, नदियों और झीलों को प्रदूषित करती है, जैव विविधता को नुकसान पहुँचाती है, और चरम मौसम की परिस्थितियों के प्रति कृषि की सहनशीलता को कमज़ोर करती है। इस मामले में अवश्य ही बदलाव की ज़रूरत है। सौभाग्य से, हर साल अधिक से अधिक स्थानीय लोग इस बदलाव की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। नवंबर 2024 में, दूसरा वीगनिक सम्मेलन क्यूबेक में आयोजित किया गया, जहाँ हजारों वीगनिक किसानों ने अपनी सफलताओं, ज्ञान और अनुभव को साझा किया।

इनमें से एक हैं ब्रिटिश किसान इयान टोलहर्स्ट, जो आठ हेक्टेयर का एक फार्म संचालित करते हैं। यह फार्म वीगनिक तरीकों से भोजन का उत्पादन करता है, जो पारंपरिक बाजारों में बिकने वाले उत्पादों की तुलना में 90 प्रतिशत अधिक कुशल साबित हुआ है। इसी तरह, कैलिफ़ोर्निया का लेज़ी मिल्लेनियल फार्म्स पूरी तरह से वीगनिक फार्म है, उन्होंने यह साबित किया कि जानवरों से जुड़े उत्पादों का उपयोग किए बिना ही उनकी फसल का उत्पादन क्षेत्र के दूसरे खेतों के बराबर रहा और उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।

हालाँकि वर्तमान प्रयासों के प्रभाव अभी छोटे पैमाने पर हैं, लेकिन वीगनिक किसान मजबूत उदाहरण पेश कर रहे हैं कि अधिक संधारणीय और नैतिक खेती से बेहतर पैदावार प्राप्त हो सकती है, साथ ही पृथ्वी के भविष्य को सुरक्षित रखा जा सकता है।

पर्यावरणीय दावों की सत्यता सुनिश्चित करने के लिए नए कानून

यूरोपीय संघ ने इस वर्ष एक नई निर्देशिका पारित की है, जिसका उद्देश्य यह है कि लोग हरित (पर्यावरण-अनुकूल) विकल्पों को चुनने में अधिक स्वतंत्र और जागरुक बन सकें। अब कंपनियां ‘पर्यावरण के अनुकूल’ या ‘कार्बन न्यूट्रल’ जैसे दावे बिना ठोस सबूत के नहीं कर सकतीं, खासकर जब ये दावे उन योजनाओं (ऑफसेटिंग कार्यक्रमों) पर आधारित हों जो बहुत हद तक बिल्कुल बेकार हैं। ऑफसेटिंग कार्यक्रमों का मतलब है ऐसे कार्यक्रम या योजनाएँ जिनका उद्देश्य किसी गतिविधि से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) या अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को “संतुलित” करना होता है।

यह नई निर्देशिका एक बड़े सुधार अभियान का हिस्सा है, जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम और उपाय लागू किए गए हैं कि कंपनियां संधारणीयता (सस्टेनेबिलिटी) के झूठे दावे न करें। कई सालों से कंपनियाँ सिर्फ प्रचार रणनीति (मार्केटिंग) बदलकर लोगों को यह यकीन दिलाने की कोशिश कर रही थीं कि वे सही काम कर रही हैं, जबकि असल में उन्होंने कुछ भी सकारात्मक बदलाव नहीं किया। अब समय आ गया है कि उन्हें उनके असली काम के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए।

पर्यावरण समर्थक राजनीतिक दलों का उदय

हालाँकि लोग पृथ्वी को बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन बड़े बदलाव के लिए सरकारों को ठोस कदम उठाने होंगे। संसद स्तर पर ही तेजी से बड़े बदलाव किए जा सकते हैं, और पर्यावरण के प्रति जागरूक नेताओं को चुनना एक प्रभावी तरीका है।

दुनिया के कई देशों में अभी भी ऐसे नेता सत्ता में हैं जो जलवायु परिवर्तन को नकारते हैं, लेकिन ब्राज़ील ने 2022 में जायर बोलसोनारो को सत्ता से हटा दिया। जायर बोलसोनारो के नेतृत्व में वनों की कटाई 53% बढ़ गई, क्योंकि जंगलों को मवेशी पालन और पशुपालन उद्योग के पशुओं के लिए चारा उगाने के लिए नष्ट किया गया। इसके अलावा, उन्होंने हजारों नए कीटनाशकों को मंजूरी दी और पर्यावरण सुरक्षा के नियमों को कमज़ोर कर दिया। उनका सत्ता से हटना धरती को बचाने के लिए ज़रूरी था।
हर देश में पर्यावरण पर ध्यान देने वाली राजनीतिक पार्टियां बढ़ रही हैं। ब्रिटेन में इस समय चार ग्रीन सांसद चुने गए हैं, जबकि डेनमार्क और स्वीडन में तीन-तीन ग्रीन सांसद हैं। वहीं, मेक्सिको ने हाल ही में एक जलवायु वैज्ञानिक को राष्ट्रपति चुना है।

निष्कर्ष

प्रगति धीरे-धीरे होती है, एक कदम, एक प्रयास, और एक संकल्प से। चाहे वह पर्यावरण के लिए वीगन भोजन खाना हो, समुद्र तट की सफाई करनी हो, पेड़ लगाने के कार्यक्रम में शामिल होना हो, या पर्यावरण के लिए काम करने वाले नेताओं को समर्थन देना हो, हम सभी इस बदलाव का हिस्सा बन सकते हैं।

सचमुच एक संधारणीय पृथ्वी बनाने की ओर बढ़ना एक लंबी यात्रा है, लेकिन ये सकारात्मक बदलाव दिखाते हैं कि उम्मीद बाकी है। हर जीत, चाहे वह छोटी हो या बड़ी, हमें एक सुरक्षित, दयालु और स्वस्थ भविष्य के करीब ले जाती है। और यह वाकई जश्न मनाने वाली बात है।

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