पशुओं के लिए, अपने स्वास्थ्य के लिए और पर्यावरण के कल्याण के लिए…डेयरी छोड़कर पौध-आधारित दूध अपनाने के लिए नीचे 10 शीर्ष कारण दिए हैं।
1. माताओं से बच्चे छीन लिए जाते हैं
गायें कोई “दूध की मशीन” नहीं हैं कि नल खोलो और दूध निकलने लग जाए। सभी स्तनधारियों की तरह, वे गर्भवती होने पर ही दूध बनाती हैं, जो उनके बच्चों को पोषण देने के लिए होता है। परंतु यह दूध इतना कीमती समझा जाता है कि जिसके लिए यह बना है, उस बछड़े को दूध की एक बूंद भी नहीं दी जाती। डेयरी उद्योग बछड़ों को उनकी माँ से अलग कर देता है ताकि वे दूध न पी सकें। यह बिछड़ाव माँ और बच्चे दोनों के लिए बेहद दर्दनाक होता है। माँ और बछड़ा कई दिनों तक एक-दूसरे को पुकारते रहते हैं, लेकिन वे फिर कभी एक दूसरे को देख नहीं पाते। भारत के छोटे डेयरी फार्मों में मरे हुए बछड़ों के शरीर को भूसे से भरकर उनकी माँ के सामने रखना आम बात है, ताकि वह यह सोचकर दूध देती रहे कि उसका बछड़ा ज़िंदा है। यह प्रथा बेहद दर्दनाक और अमानवीय है।

2. बछड़ों को जानबूझकर बीमार और अलग-थलग रखा जाता है
बछड़ों को डेयरी उद्योग में मात्र एक उप-उत्पाद के रूप में देखा जाता है, लेकिन इनसे मुनाफा कमाने का कोई मौका उद्योग नहीं छोड़ता। इसीलिए, इन नन्हें पशुओं को वील (बछड़े का मांस) के लिए पाला जाता है। इन्हें अक्सर छोटी-छोटी झोपड़ियों में अकेले जंजीरों से बांध दिया जाता है और जानबूझकर कमज़ोर और खून की कमी से ग्रस्त रखा जाता है। बहुत कम उम्र में इन्हें इनके कोमल मांस के लिए मार दिया जाता है।
3. माताओं को बूचड़खाने भेजा जाता है
डेयरी उद्योग में गायों को लगभग लगातार गर्भवती रखा जाता है ताकि उनका दूध निरंतर निकाला जा सके। वे अपनी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा गर्भावस्था और दूध देने की प्रक्रिया में बिताती हैं, जबकि उन्हें बेहद खराब स्थितियों में रखा जाता है और केवल उतना ही भोजन दिया जाता है जितना उनकी उत्पादकता बनाए रखने के लिए ज़रूरी हो। उनका शारीरिक और मानसिक शोषण इतना अधिक होता है कि अधिकांश गायें छह साल की उम्र से पहले ही पूरी तरह टूट जाती हैं। उन्हें न तो सेवानिवृत्ति का सुख मिलता है, न ही उन्हें कभी खुली जगहों पर घूमने और चरने का मौका मिलता है। जब उनकी प्रजनन क्षमता से मुनाफा कमाना संभव नहीं होता, तो उद्योग उन्हें बूचड़खाने ले जाता है, जहाँ उनके थके-हारे शरीर से आखिरी लाभ कमाया जाता है। इन माताओं को अक्सर गर्भवती अवस्था में ही मार दिया जाता है। भारत में पूरी दुनिया की तुलना में सबसे ज़्यादा डेयरी पशुओं की आबादी है और यह बात हैरानी पैदा नहीं करती है कि भारत दुनिया के सबसे बड़े बीफ निर्यातकों में से एक है।

4. दूध संक्रमित है
मास्टाइटिस एक पीड़ादायक संक्रमण है जो गायों के थनों में होता है और डेयरी झुंडों में यह बीमारी आम है। यह संक्रमण इतना व्यापक है कि दूध में ‘न्यूट्रोफिल’ नामक सोमाटिक कोशिकाएं मिल जाती हैं, जिसे लोग पी जाते हैं। ये सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें शरीर के ‘पहले प्रतिरोधक’ कहा जाता है। ये संक्रमण के स्थान पर सबसे पहले पहुंचती हैं, और इस मामले में, थनों की ओर जाती हैं। न्यूट्रोफिल मवाद (पस) का मुख्य घटक होते हैं, और डॉ. माइकल ग्रेगर ने यह निष्कर्ष निकाला कि दूध के प्रत्येक कप में संभवतः एक बूंद मवाद हो सकता है। यूरोप में, यदि दूध में 400,000 प्रति मिलीलीटर सोमाटिक कोशिकाएं होती हैं, तो उसे इंसानों के उपभोग के लिए अयोग्य समझा जाता है; जबकि अमेरिका में यह सीमा 750,000 है।
5. डेयरी अधिकांश लोगों को बीमार बनाती है
यदि आपको खाने के बाद कभी पेट फूलना, गैस, दस्त, पेट में ऐंठन, या मतली महसूस होती है, तो हो सकता है कि आपका शरीर दूध में मौजूद शुगर को पचा नहीं पा रहा हो। इसमें चौंकने वाली कोई बात नहीं है। मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है जो दूध पीना तब भी जारी रखता है जब वह स्तनपान की उम्र पार कर चुका होता है, और वह भी अपनी प्रजाति का दूध नहीं, बल्कि किसी और प्रजाति का दूध! 95% एशियाई, 60 से 80% अफ्रीकी अमेरिकी और अश्कनाज़ी यहूदी, 80 से 100% मूल अमेरिकी, और 50 से 80% अमेरिकी हिस्पैनिक्स लोग लैक्टोज़ असहिष्णु हैं और उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा हो जाएगा अगर वे डेयरी को पूरी तरह से त्याग दें।
6. यह संतृप्त वसा का मुख्य स्रोत है
फ़िजिशियन्स कमेटी फॉर रिस्पॉन्सिबल मेडिसिन के अनुसार, “दूध और अन्य डेयरी उत्पाद अमेरिकी आहार में संतृप्त वसा के सबसे बड़े स्रोत हैं और ये हृदय रोग, टाइप 2 डायबिटीज़ और अल्ज़ाइमर रोग के जोखिम को बढ़ाते हैं।” इसलिए, भले ही आप इसे पचा पाने में सक्षम हों, डेयरी हमारे जीवन पर दीर्घकालिक हानिकारक प्रभाव डाल सकती है और समय से पहले मृत्यु का कारण बन सकती है।
7. डेयरी और कैंसर के बीच गहरा संबंध पाया गया है
शोध से स्पष्ट हुआ है कि डेयरी का सेवन स्तन और प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है। नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट, नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ और वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड द्वारा वित्तपोषित एक अध्ययन में पाया गया कि जो महिलाएं रोज़ाना एक-चौथाई से एक-तिहाई कप गाय का दूध पीती हैं, उनमें स्तन कैंसर का खतरा 30% तक बढ़ जाता है। प्रतिदिन एक कप दूध पीने से स्तन कैंसर का खतरा 50% तक बढ़ जाता है, जबकि 2-3 कप पीने से यह खतरा 80% तक बढ़ने की संभावना होती है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि : “डेयरी दूध के सेवन के मौजूदा दिशा-निर्देशों को सावधानी से देखे जाने की आवश्यकता है।”

8. डेयरी व्यापर हमारे जल स्रोतों को प्रदूषित करता है
इस पृथ्वी पर एक अरब गायें हैं, और वे सभी बहुत सारा गोबर करती हैं। बहुत ही ज़्यादा! अकेले अमेरिका में ही हर साल 24 बिलियन टन डेयरी गोबर का उत्पादन होता है। यह कचरा मिट्टी और पानी में मिलकर भारी प्रदूषण फैलाता है। 2019 के एक अध्ययन ने डेयरी के वैश्विक प्रभाव को लेकर कहा : “डेयरी गायें और अन्य पशुधन जल संसाधनों के उपयोग और उपलब्धता, जल की गुणवत्ता, जल विज्ञान, और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव डालते हैं…डेयरी उद्योग से होने वाले जल प्रदूषण के मुख्य कारण हैं: पशुओं का अपशिष्ट, एंटीबायोटिक्स और हार्मोन जैसे फार्मास्युटिकल अवशेष, चारे के लिए उगाई गई फसलों में उपयोग किए गए उर्वरक और कीटनाशक, और कटावग्रस्त चरागाहों से बहकर आने वाले तलछट।’’

9. डेयरी जलवायु संकट का प्रमुख कारण है
गायें पूरी दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का सबसे मुख्य कृषि स्रोत हैं। मीथेन, वायुमंडल को गर्म करने में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 28 गुना अधिक प्रभावशाली है और हर साल एक गाय लगभग 220 पाउंड मीथेन उत्सर्जित करती है। जब भूमि उपयोग, कृषि पद्धतियों, प्रसंस्करण और परिवहन को ध्यान में रखा गया तो पाया गया कि जलवायु के लिए सबसे नुकसानदेह चार खाद्य पदार्थ ये हैं : बीफ, भेड़-बकरी का मांस, चीज़ और डेयरी गायों का मांस। डेयरी फार्म पानी की बहुत अधिक खपत करते हैं और हमारे कीमती ताज़े पानी और भूजल संसाधनों को तेजी से खत्म कर रहे हैं। नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के अनुसार, भारत में 1 किलोग्राम दूध के उत्पादन में लगभग 1236 लीटर पानी ख़त्म होता है।

10. पौधों से बना दूध स्वाद में अधिक अच्छा है।
यह बिल्कुल सच है। वास्तव में, बहुत से लोग कहते हैं कि डेयरी छोड़ने के बाद, जब वे इसे फिर से आज़माते हैं, तो उन्हें यह खराब, बासी और दुर्गंधयुक्त लगता है। अपने स्वाद को एक नई दिशा दें और जई, सोया, बादाम और काजू जैसे पौधों से बने दूध का आनंद लें – जो आपके स्वास्थ्य, इस पृथ्वी और इसके सभी प्राणियों के लिए फायदेमंद हैं। इससे स्वादिष्ट और कुछ नहीं है।