लोगों के मनोरंजन के लिए दुनिया भर में जंगल के प्राणियों को पिंजरों, बाड़ों और घेरों में बंद कर दिया जाता है। लेकिन, काफी हद तक हम समझने लगे हैं कि प्राणियों के लिए कैद क्या है और खुदसे पूछने लगे हैं कि क्या अब चिड़ियाघरों और एक्वेरियम के बारे में फिर से सोचने का समय नहीं आ गया है?
चिड़ियाघरों की शुरुआत कब हुई?
सदियों से, दौलतमंद “संग्राहक” अपने मनबहलाव के लिए जंगलों के प्राणियों को पकड़ कर घर पर ले आने के लिए दुनिया भर में घूमते रहे हैं। प्राणियों को पकड़ कर ले जाते वक्त स्वाभाविक रूप से उनमें से कई प्राणी मर जाते थे, जान बचाने की कोशिश में कई प्राणियों के बच्चे उनकी माँ से बिछड़ जाते थे या उन्हें अनाथ छोड़ दिया जाता था। उनमें से कई अपने गंतव्य पर पहुँचने के बाद मर जाते थे क्योंकि भयावह परिस्थितियों में रहने के लिए उन्हें मजबूर किया जाता था। आज चिड़ियाघरों को हम जिस रूप में जानते हैं, वे अठारहवीं सदी में अस्तित्व में आए थे। उस वक्त यह एक व्यवसाय बन गया था जिसमे जंगल से चुराये हुए प्राणियों को देखने के लिए लोगों से पैसे वसूले जाते थे।

क्या संरक्षण के लिए चिड़ियाघर ज़रूरी हैं?
फिलहाल, चिड़ियाघरों का यह तर्क है कि वे सुरक्षा का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि बहुत कम प्राणी जंगल में वापस लौटाए जाते हैं और वहाँ रखी जाने वाली अधिकांश प्रजातियाँ लुप्तप्राय नहीं हैं। हालाँकि, चिड़ियाघर विलुप्त हो चुकी कुछ प्रजातियों को बचाये रखने का काम करते हैं। इस पर कुछ लोगों का कहना है कि ऐसी विलुप्त प्रजातियों को कैद करने से तो बेहतर होगा कि बेकाबू नष्ट हो रहे उनके आवासों को बचाया जाए। उनकी मांग है कि हमें उन सभी गैर-लुप्तप्राय प्राणियों के बारे में भी सोचना चाहिए जिन्हें पर्यटकों में लोकप्रिय होने की वजह से ही कैद में रखा जाता है।
चिड़ियाघर स्वस्थ प्राणियों के लिए घातक हैं
ज़ाहिर है हर किसीको प्राणियों के बच्चे पसंद होते हैं। और इसलिए, ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को आकर्षित करने के लिए चिड़ियाघर उनकी नस्ल को बढ़ाने का काम करते हैं। लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उनका क्या होता है? अक्सर, या तो उन्हें दूसरे चिड़ियाघरों में भेज दिया जाता है या मार दिया जाता है।
ब्रिटन के एक प्रतिष्ठित लॉन्गलीट सफ़ारी पार्क ने शेर के बच्चों की नियमित आपूर्ति बनाए रखने के लिए पहले तो बड़ी तादाद में उनका प्रजनन करवाया और फिर बाद में पूरी तरह से स्वस्थ शेर शावकों को मार डाला। कोपेनहेगन में, मारियस नाम के जिराफ़ को न केवल मार दिया गया, बल्कि खुले आम जनता के सामने उसके शरीर की चीरफाड़ तक की गई। उसके पीछे की वजह यह बताई गई कि वह वहां के दूसरे जिराफ़ों से घनिष्ठ रूप से सम्बंधित होने के कारण प्रजनन के लिए उपयुक्त नहीं था।
2018 में ओरेगन चिड़ियाघर में पैकी नामक हाथी की हत्या के बाद, चिड़ियाघरों द्वारा होनेवाली हज़ारों प्राणियों की हत्या के मामलों को प्रकाश में लाने के लिए एथोलॉजिस्ट डॉ. मार्क बेकॉफ के साथ मिलकर आंदोलनकारियों ने विश्व जूथनेशिया (चिड़ियाघर में जानबूझकर की गई पशु हत्या) दिवस की स्थापना की।

बनावटी माहौल
जंगल के प्राणी को उसके मूल वातावरण में देखने से ज़्यादा अनोखी बात क्या हो सकती है? इसके बावजूद भी प्राणियों को चिड़ियाघर के छोटे पिंजरों और बाड़ों में कैद करके रखा जाता है, ताकि दर्शकों को उन्हें करीब से देखने का बढ़िया मौका मिल सके। मतलब कि, बाघों और शेरों को चिड़ियाघरों में जंगल के मुकाबले लगभग 18,000 गुना कम जगह तथा ध्रुवीय भालुओं को कुदरती आवास के मुकाबले दस लाख गुना कम जगह मिल पाती है। इस वजह से प्राणी न तो स्वाभाविक रूप से घूम सकते हैं, ना ही अपनी पसंद का जब चाहिए तब खाना खा सकते हैं। और ना ही वे स्वाभाविक रूप से अपना साथी चुनकर परिवार या सामाजिक समूह में शामिल हो पाते है। इन ज़रूरतों से वंचित होने के मानसिक प्रभाव बड़े गहरे होते है।
चिड़ियाघरों में मानसिक यातना
ज़बरदस्ती कैद में रखे गए जंगल के प्राणी गंभीर मानसिक यातना के शिकार हो जाते हैं। आप इसे शेरों या बाघों जैसी बड़ी बिल्लियों में अपने घेरों के इर्द-गिर्द बारबार ऊपर-नीचे घूमते हुए देख सकते हैं। हाथियों को आप एक तरफ से दूसरी तरफ़ झूमते हुए देख सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे आघातग्रस्त बच्चे आगे-पीछे हिलते रहते हैं। जब आप इन हरकतों को ‘निश्चित व्यवहार’ से जान जाते हैं, तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि कैद में रखे गए ये प्राणी कितने कष्ट में हैं। मछलीघर के हालात भी कुछ खास अच्छे नहीं है, हकीकत में यह पानी के अंदर बने चिड़ियाघर ही हैं। फ़्रीडम फ़ॉर एनिमल्स की एक रिपोर्ट से पता चला है कि इंग्लैंड के 90 प्रतिशत मछलीघरों में ऐसी मछलियाँ हैं जो खास प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित करती हैं।

प्राणियों की उपेक्षा और उनकी पीड़ा
नियमित जांच से चिड़ियाघरों में होनेवाली भयानक पीड़ा और उपेक्षा का पता चलता है। ब्रिटेन के एक चिड़ियाघर में, सिर्फ़ चार साल में 486 प्राणी मर गए, जिनमें गोलायथ नामक एक अफ़्रीकी कछुआ भी शामिल है, जो बिजली की बाड़ में करंट लगने से मर गया और एक स्क्वीररेल बंदर रेडिएटर के पीछे सड़ता हुआ पाया गया। आयोवा के एक चिड़ियाघर में, प्राणियों को भूख से मरने के लिए छोड़ दिया गया, जबकि मियामी सीक्वेरियम में कम से कम 120 डॉल्फ़िन और व्हेल मर गईं।
चिड़ियाघर लोगों के लिए भी घातक हैं
चिड़ियाघरों में जानवरों की मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक पीड़ा इतनी कठोर होती है कि कुछ प्राणी इनसे छुटकारा पाने के लिए कुछ भी करने को आमादा हो जाते हैं। स्वाभाविक है, कि कैद की इस तनावपूर्ण स्थिति में शेरों और अन्य जानवरों द्वारा चिड़ियाघर के लोगों पर कई घातक हमले हुए हैं। ऑरलैंडो में, टिलिकम नामक एक व्हेल आइसलैंड के पास के जलाशय में पैदा हुआ था उसे जबरन कैद में रखा गया था। लंबे तनावपूर्ण कारावास और जबरदस्ती करतब दिखाने के लिए मजबूर किये जाने पर उसने अपने प्रशिक्षक को मार डाला। कैद से छूटने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा कर जो जानवर भागने में सफल हो जाते हैं, उनमें से ज़्यादातर जानवरों को पकड़ लिया जाता है और वापस उसी कैद में भेज दिया जाता है। दुख की बात तो यह है कि इनमें से ज़्यादातर जानवरों को गोली मार दी जाती है, जिनमें इंग्लैंड के दो भूरे भालू, स्वीडन के तीन चिम्पांजी, फ्रांस के चार भेड़िये और फ़्लोरिडा का एक काला भालू शामिल है।

चिड़ियाघरों के विकल्प
जंगल के प्राणी कैद में रखे जाने के लिए नहीं हैं। उसमें न तो उनकी भलाई है और न ही यह हमारे लिए सुरक्षित है। इसका विकल्प यह है कि हममें से जिन्हें भी प्राणियों को देखना पसंद है वे अभयारण्यों में जा सकते हैं, वन्यजीव पुनर्वास केंद्रों में स्वयंसेवक बन सकते हैं, अपने आसपास की प्रकृति में समय बिता सकते हैं, वन्यजीवों पर आधारित फ़िल्में देख सकते हैं, बहुत करीब से और व्यक्तिगत रूप से वर्चुअल रियलिटी सफ़ारी ले सकते हैं, या घर पर तथा दूर कहीं बिना दखलअंदाज़ी के वन्यजीव देखने की यात्रा बुक करवा सकते हैं। वन्य प्राणियों को देखने का हमारा शौक प्राणियों की सलामती की कीमत पर नहीं होना चाहिए। यह हमारे लिए एक घंटे की मौज है लेकिन उनके लिए जीवनभर की पीड़ा है।