संवेदनशीलता क्या है और जानवरों को संवेदनशील प्राणी के रूप में पहचानना इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

एक संवेदनशील प्राणी वह है जिसमें चेतना है, उसकी खुद की विशिष्ट रुचियाँ होती हैं, वह ज़िन्दगी में अनुभव प्राप्त करने की क्षमता रखता है, उन्हें संजोता है और अपने अनुभवों के आधार पर अपनी भलाई के लिए निर्णय लेने की क्षमता रखता है। दर्शनशास्त्र में, 18वीं शताब्दी से “संवेदनशील” शब्द को “तार्किक विचार” से अलग किया गया है। संवेदनशीलता का अर्थ है संवेदनाओं को अनुभव करना और आसपास की दुनिया के बारे में व्यक्तिपरक धारणा रखने की क्षमता रखना। इन संवेदनाओं और अनुभवों को व्यक्ति सकारात्मक या नकारात्मक के रूप में समझ सकता है, और इससे प्रेरित होकर अपनी आदतें बनाता है या कार्य करता है।

चेतना-केंद्रित आचारसंहिता का तर्क है कि नैतिक रूप से पर्याप्त जीव वे हैं जिनमें महसूस करने की क्षमता होती है। मानव-केंद्रित पदों ने मानव जानवरों को गैर-मानव जानवरों से अलग करने के लिए संवेदना की कसौटी का उपयोग किया है, अनुभवों और संवेदनशीलता की क्षमता के आधार पर मानव वर्चस्व की वकालत की है। इस दर्शन में, मनुष्य को संवेदना महसूस करने के आधार पर अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

क्या मनुष्य ही एकमात्र संवेदनशील प्राणी है?

उपरोक्त परिभाषा को ध्यान से पढ़कर हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि सभी जानवरों में संवेदनशीलता होती है। पालतू जानवरों पर विचार करें। उन्हें जब प्रशिक्षण दिया जाता है तब अक्सर उन्हें सही काम करने के लिए इनाम और गलत करने के लिए सज़ा मिलती है, और इस आधार पर जानवर अपने अच्छे व्यवहार का निर्माण करने के लिए प्रेरित होते हैं। दूसरे शब्दों में, इन जानवरों को एक व्यक्तिपरक अनुभव हो रहा है कि वे इसे सकारात्मक (इनाम) या नकारात्मक (दंड) के रूप में परिभाषित करते हैं और तदनुसार कार्य करते हैं। शायद, जो जानवर मनुष्यों से कम मेल-जोल खाते हैं, यानी, जो स्तनधारी नहीं हैं, उनको समझना थोड़ा मुश्किल हो जाता है, खासकर इसलिए क्योंकि हम यह नहीं समझ पाए हैं कि वे एक-दूसरे के साथ कैसे संवाद करते हैं। और यही कारण है कि दर्शन और जैविक विज्ञान दोनों में यह वर्षों से बहस का विषय रहा है।

विज्ञान क्या कहता है?

जुलाई 2012 में, ‘संवेदनशीलता’ पर कैम्ब्रिज घोषणापत्र की सूचना दी गई थी। इंग्लैंड में, न्यूरोसाइंटिस्ट, न्यूरोफार्माकोलॉजिस्ट, न्यूरोफिज़ियोलॉजिस्ट, न्यूरोएनाटोमिस्ट और कम्प्यूटेशनल न्यूरोसाइंटिस्ट का एक अंतरराष्ट्रीय समूह मनुष्यों और गैर-मानव जानवरों दोनों में सचेत अनुभव और अन्य संबंधित व्यवहारों के न्यूरोबायोलॉजिकल सबस्ट्रेट्स की पुन: जांच करने के लिए एक साथ आया।

जिन पूर्वाग्रहों की उन्होंने जांच करने का लक्ष्य रखा था, उनमें से एक यह दावा था कि जिन जानवरों में नियोकोर्टेक्स होता है (कुछ स्तनधारी, विशेष रूप से ‘होमो जीनस’ के, जैसे कि चिंपांज़ी और ग्रेट एप्स ) खुशी और दर्द का अनुभव करने की क्षमता रखते हैं, और इसलिए उनकी पसंद और नापसंद होती हैं और इसीलिए वे नैतिक विचार का विषय बने।

तुलनात्मक अनुसंधान के क्षेत्र में गैर-मानवीय जानवरों और अक्सर स्वयं मनुष्यों को भी अपने व्यक्तिपरक अनुभवों को स्पष्ट तरीके से और समझदारी से दूसरे लोगों तक पहुँचाने में बाधा का सामना करना पड़ता है। फिर भी, इस वैज्ञानिक समूह द्वारा किये गये कुछ समझौते इस प्रकार थे:

  • समान मस्तिष्क क्षेत्रों को कृत्रिम रूप से उत्तेजित करने से मानव और गैर-मानव दोनों जानवरों में संबंधित व्यवहार और भावनात्मक स्थिति उत्पन्न होती है।
  • पक्षी अपने व्यवहार, न्यूरोफिज़ियोलॉजी और न्यूरोएनाटॉमी में ‘चेतना के विकास’ का एक उल्लेखनीय मामला पेश करते प्रतीत होते हैं। शानदार प्रमाण यह मिले हैं कि अफ़्रीकी ग्रे तोतों में चेतना का स्तर
  • अंतिम कथन इस प्रकार समाप्त होता है:

“नियोकोर्टेक्स की अनुपस्थिति किसी जीव को भावात्मक अवस्थाओं का अनुभव करने से नहीं रोकती है। अभिसरण साक्ष्य ( कन्वर्जेंस एविडेंस ) इंगित करता है कि गैर-मानव जानवरों में सचेत अवस्थाओं के न्यूरोएनाटोमिकल, न्यूरोकेमिकल और न्यूरोफिज़ियोलॉजिकल सब्सट्रेट्स होते हैं और साथ ही उनमें अपनी इच्छानुरूप व्यवहार प्रदर्शित करने की क्षमता होती है। नतीजतन, सबूतों का वज़न यह दर्शाता है कि सिर्फ मनुष्य ही संवेदना उत्पन्न करने वाले न्यूरोलॉजिकल सब्सट्रेट नहीं रखते हैं, बाकी प्राणियों में भी यह मौजूद होता है। गैर-मानव जानवरों, जिनमें सभी स्तनधारी और पक्षी शामिल हैं, और ऑक्टोपस जैसे कई अन्य जीवों में भी यह न्यूरोलॉजिकल सब्सट्रेट्स मौजूद हैं।”

यहां आप इस घोषणापत्र के सर्वसम्मत निष्कर्षों को इसके समर्थकों द्वारा सुन सकते हैं।

इस वैज्ञानिक घोषणा के आधार पर, हमारे पास यह कहने के लिए पर्याप्त आधार हैं कि सभी प्रजातियों के जानवर संवेदनशील प्राणी हैं।

अन्य प्राणियों की संवेदनशीलता का आकलन करने के लिए कौनसे मानदंड उपयोगी हैं?

व्यापक मानवकेंद्रित स्थिति, जो यह दावा करती है कि केवल मनुष्य ही सचेत हैं और दर्द या खुशी के व्यक्तिपरक अनुभव प्राप्त करने में सक्षम हैं, यह विचार अक्सर इस धारणा पर आधारित है कि हम जानवरों की मानसिक और व्यक्तिपरक भावनाओं/विचारों तक नहीं पहुंच सकते क्योंकि हमारे पास उनके साथ संवाद करने के साधनों की कमी है। यह एक समझदारी से भरा दावा नहीं है क्योंकि यह हमें सीधे उस दायरे में ले जाएगा जहां कोई यह तर्क दे सकता है कि एक मनुष्य का बच्चा एक संवेदनशील प्राणी नहीं है क्योंकि हम उनके साथ प्रभावी ढंग से संवाद नहीं कर सकते हैं, या विकलांग व्यक्ति जो अपने अनुभव और संवेदनाएँ स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं कर सकता है, वह भी कोई संवेदनशील प्राणी नहीं है। यह अवधारणा खतरनाक है, है ना?

जीव विज्ञान से लेकर एथोलॉजी (वह विज्ञान जो जानवरों के व्यवहार का अध्ययन करता है) तक, कई वैज्ञानिक अनुसंधान क्षेत्रों में, ऐसी कई चीजें हैं जिनसे हम यह निर्धारित कर सकते हैं कि जानवरों में चेतना है या नहीं। उदाहरण के लिए, इस लेख में वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि कशेरुकी जानवर भावनाओं और मानसिक स्थितियों का अनुभव करते हैं।

संवेदनशीलता का आकलन करने के लिए विचार करने योग्य कुछ मानदंड हैं:

1. व्यवहार

विभिन्न तरह की उत्तेजनाएं जो हमें दर्द या खुशी देती हैं, उनके अनुसार हमारा व्यवहार बदलता है, जैसे कि हमारे चलने, रहने या छोड़ने का तरीका, हम रक्षात्मक स्थिति अपनाते हैं, चीखते, कराहते हैं आदि। जानवर नियमित रूप से इस प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। इसके अलावा, ऐसे व्यवहार भी हैं जो उत्तेजना के प्रति तत्काल प्रतिक्रिया नहीं देते हैं बल्कि इसमें धीरी धीरे समय के साथ चीजों को सीखा जाता है। संज्ञानात्मक क्षमताओं को उन प्रक्रियाओं के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिनके माध्यम से पर्यावरण से जानकारी प्राप्त की जाती है, संसाधित की जाती है, रूपांतरित की जाती है, बनाए रखी जाती है और फिर निर्णय लेने और कार्य करने के लिए उपयोग की जाती है। उदाहरण के लिए, कुछ ऑक्टोपस प्रजातियाँ खतरे की स्थिति में छिपने के लिए अपने वातावरण में मौजूद अन्य तत्वों जैसे सीपियों, पत्थरों या मिट्टी का उपयोग करती हैं। यह भी देखा गया है कि यदि ऑक्टोपस को अपने आश्रय स्थल के अंदर कोई दर्दनाक उत्तेजना महसूस हुई हो तो वे अपने छिपने के स्थान बदल लेते हैं।

जब जानवर दर्द या खुशी की प्रतिक्रिया देते हैं, तो केवल इसी से हम इस बात की पुष्टि नहीं करते हैं कि जानवरों में संवेदनशीलता होती है बल्कि उनके जीवन के हर पल को देखते हुए हम इस बात की पुष्टि करते हैं। वास्तव में, किसी भी प्राणी के जीवित रहने की सबसे बड़ी शर्त यह होती है कि वह अपने आस पास के वातावरण के प्रति किस प्रकार प्रतिक्रिया देता है : वह यह समझता है कि उसे एक तरीके से कार्य करना है या दूसरे तरीके से। भोजन खाना है या नहीं खाना; भागना है या नहीं; छिपना या खोजबीन के लिए बाहर जाना है; मूत्र को रोके रखना या उसे बाहर निकालना है, इत्यादि, रोज़मर्रा के हज़ारों इस तरह के व्यवहार हैं जो जानवर अपने पर्यावरण की स्थितियों के आकलन के आधार पर तय करते हैं कि उन्हें वे करने हैं या नहीं। यदि जानवरों में चेतना नहीं होती तो वे इतना सबकुछ कैसे कर सकते थे?

2. उद्विकासी विचार

जिन प्राणियों में संवेदनशीलता होती है उनके अस्तित्व को इस तरह से समझाया गया है : चेतना के कारण उनकी जीवित रहने की क्षमता में वृद्धि होती है और परिणामस्वरूप, वे अपने जीन अपनी नई पीढ़ियों तक पारित करते हैं और इस तरह अपनी प्रजातियों को बनाए रखते हैं। जीवों में, चेतना को भारी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, क्योंकि यदि यह उनके अस्तित्व और उनका बचाव सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक नहीं होती, तो अधिक चेतना उपद्रव बन जाती। मनुष्य अपनी ऊर्जा का 20 प्रतिशत से अधिक का उपयोग चेतन प्रक्रियाओं में करता है। अन्य जानवरों में भी यह अनुपात समान है। ऐसे जीवों में जिन्हें अपने जीवन के तरीके के कारण निरंतर निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं होती है – जैसे कि पौधे या कवक, उदाहरण के लिए, जो जीव हिलते नहीं हैं – उनमें इस ऊर्जा व्यय की अस्तित्व में रहने की कोई आवश्यकता नहीं है।

3. शरीर क्रिया विज्ञान

यदि तंत्रिका तंत्र केंद्रीकृत नहीं है तो केवल तंत्रिका तंत्र का मौजूद होना ही यह नहीं दर्शाता है कि उस जीव में संवेदनशीलता होगी। आज, हम जानते हैं कि ‘चेतना और संवेदना’ के लिए एक केंद्रीकृत तंत्रिका तंत्र आवश्यक है। इसके अलावा, विभिन्न प्रजातियों में तंत्रिका तंत्र जटिलता और केंद्रीकरण की मात्रा में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। तो, इस विश्लेषण में कौन से अन्य शारीरिक मानदंड हमारी मदद करते हैं? कुछ जानवरों के मामले में, यह तभी माना जाता है कि उनमें एनाल्जेसिक नामक रसायन मौजूद हैं जब उन जानवरों को दर्द का अनुभव होता है। बड़ी संख्या में अकशेरुकी जीव जिनमें सरल केंद्रीकृत तंत्रिका तंत्र मौजूद होती है, वे जीव भी इन रसायनों का स्राव करते हैं। एक अन्य मानदंड जो संवेदनशीलता के विचार को पुष्ट करता है वह है नोसिसेप्शन: अर्थात हानिकारक या संभावित रूप से हानिकारक संवेदी उत्तेजनाओं का पता लगाना। ऐसे जीव हैं जिनमें नोसिसेप्टर होते हैं जो इस जानकारी को प्रसारित करते हैं। लेकिन, यह निर्धारित करने के लिए कि नोसिसेप्टर का होना दर्द की धारणा से संबंधित है, विज्ञान को नोसिसेप्टर जानकारी को दर्द के रूप में समझने के लिए मस्तिष्क की संरचनात्मक स्थितियों को परिभाषित करने की आवश्यकता होगी, कुछ ऐसा जिससे हम अभी भी अनजान हैं। हालाँकि, जानवरों में ये रसायन कोई अन्य कार्य नहीं करते हैं, जिससे आज तक वैज्ञानिक समर्थन के बिना भी हमें लगता है कि वे इन जीवों को हानिकारक अनुभवों से बचाने के लिए हैं।

निष्कर्ष

इस समय, कोई वैज्ञानिक तंत्र नहीं है जो सटीक रूप से निर्धारित करता हो कि संवेदनशीलता क्या है, यह कैसे उत्पन्न होती है, और यह कैसे कार्य करती है। हालाँकि, गैर-मानव जानवरों की महसूस करने की क्षमता के बारे में एक निश्चित सहमति है। यह कोई मामूली मुद्दा नहीं है क्योंकि जानवरों के प्रति एक समाज के रूप में हमारे विचार के आधार पर, उनके प्रति स्वीकार्य दृष्टिकोण बदल जाएगा। कई देशों के कानून अभी भी जानवरों को वस्तु मानते हैं। हमारे कानून सामाजिक आम सहमति का एक ईमानदार प्रतिबिंब हैं, वे हमारी विशिष्ट रुचियों का जवाब हैं, और इतिहास में विशिष्ट क्षणों में लिखे गए हैं। उपलब्ध वैज्ञानिक प्रमाणों और हमारे आस-पास के जीवित प्राणियों के प्रति अधिक विनम्रता, सहानुभूति और प्रेम के दृष्टिकोण के साथ, क्या यह स्वीकार करने का समय नहीं है कि जानवर भी हमारी तरह भावनाएं महसूस करते हैं, और हमें उनका सम्मान करना चाहिए और उनके लिए सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना चाहिए? हालाँकि हम अभी भी इस लक्ष्य से बहुत दूर हैं, क्योंकि आज भी क्रूर पशुपालन उद्योगों में अरबों जानवर कैद हैं, परन्तु जब हमें यह जानने को मिला कि मेक्सिको और अर्जेंटीना जैसे देशों में ये बहस फिर से शुरू हो रही है, तो यह एक सकारात्मक संकेत है।

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