वीगनवाद के बारे में बाइबिल क्या कहती है?

यदि हॉट डॉग कुत्तों से बने होते, तो क्या आप उसे खाते? अगर मुझसे यह सवाल सात साल पहले पूछा होता (जब मैं मांसाहारी था), मैंने कहा होता ‘नहीं’। मेरा पिछला उत्तर अब मुझे हैरान करता है क्योंकि वह इस बात को बताता है कि हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं; यह सोच हमें हमारे पूर्वजों से मिली है, न कि किसी बाइबिल के नियम से।

आखिरकार, जैसा कि हम ईसाइयों को शुरू मे यह सोचने के लिए ललचाया गया होगा, कि मेमने और सूअर खाना ठीक है क्योंकि मनुष्यों को भगवान ने जानवरों के ऊपर अधिकार दिया था (उत्पत्ति पुस्तक (जेनेसिस) 1:26-28), तब तो उत्पत्ति (जेनेसिस) के अनुसार बिल्लियों और कुत्तों को खाना भी ठीक रहेगा, और न ही बाइबिल की कोई और पुस्तक यह बताती है कि मेमनें, मटन और सूअर खाने के लिए है, जबकि बिल्लियाँ और कुत्ते प्रेम करने के लिए हैं। हालांकि हम में से अधिकतर लोगों को बिल्लियों और कुत्तों को खाने के बारे में सोचना तक अजीब लगता है I

जब हम यह समझते हैं कि जानवरों के प्रति ऐसा व्यवहार – जिसमें हम सूअर खाने की इच्छा जताते हैं और बिल्लियों से प्रेम करते हैं – यह एक सदियों से चली आ रही सांस्कृतिक मान्यता है, पशुओं पर मनुष्यों का अधिकार होना चाहिए ऐसा बाइबिल में नहीं लिखा हैI जब हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि क्यों हम एक पशु को मारते हैं और दूसरे पशु को प्यार करते हैं तो यह हमें सदियों से चली आ रहीं सांस्कृतिक मान्यताओं से खुद को दूर करने का मौका देता है और साथ ही नए सिरे से खुद से पूछने का मौका देता है कि बाइबिल जानवरों के प्रति किस तरह का व्यवहार करना सिखाती है। 

इस प्रश्न का उत्तर समझने के लिए, आइए उत्पत्ति (जेनेसिस) की पुस्तक को शुरुआत से शुरू करते हैं। शायद इस बात से सबसे अधिक मिलती हुई बात उत्पत्ति निर्माण कथा के भाग उत्पत्ति (जेनेसिस)1:29-30:  में है। 

परमेश्वर ने कहा, ‘देखो, जितने भी बीज वाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं, और जितने वृक्षों में बीज वाले फल होते हैं, वे सब मैंने तुम्हें दिए हैं; तुम उन्हें भोजन के लिये रखना। और पृथ्वी के सब जन्तुओं, आकाश के सब पक्षियों, पृय्वी पर रेंगने वाले जन्तुओं को, और जिन भी प्राणियों में ज़िन्दगी की साँस है, उन सब को मैंने खाने के लिए एक एक हरा पौधा दिया है।’ और वैसा ही था।

इन श्लोकों में, भगवान मनुष्यों और जानवरों दोनों को एक जैसे पौधे-आधारित आहार का सेवन करने की बात करता है। दूसरे शब्दों में, ईश्वर ने दुनिया को वीगन बनाया है। और यह वीगन दुनिया है जो भगवान आगे बढ़ाना चाहते हैं (जेनेसिस 1:31)। 

तब, दूसरे सभी प्राणियों पर मानव के अधिकार का क्या (उत्पत्ति(जेनेसिस)1:26-28)? कुछ लोगों ने जानवरों के खाने को सही ठहराने के लिए मानव के द्वारा जानवरों पर अधिकार के विचार का प्रयोग किया है: मनुष्यों को दूसरे जानवरों को खाने की अनुमति दी है क्योंकि मनुष्यों को दूसरे जानवरों पर अधिकार दिया गया था। 

जबकि हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते हैं कि ऐसी सोच प्रभावशाली रही हैI एक बात है जो ‘प्रभुत्व'(किसी पर अधिकार होना) की ऐसी किसी भी कही बात के खिलाफ रखी जा सकती है। तो बात यह है कि जिस कथा में भगवान पौधे आधारित आहार लेने को कहते हैं उसी कथा से पहले और उसके हिस्से में इंसानों को जानवरों के ऊपर अधिकार भी दिया गया है। जो कुछ भी ‘दूसरों पर अधिकार करने’ का अर्थ हो, क्या भगवान के बाद पौधे-आधारित आहार का कोई भी मतलब रह जाएगा, जानवरों पर अधिकार का मतलब यह नहीं कि हम उन्हें मार या खा सके।  

जिस प्रकार बाइबल में दुनिया की शुरुआत बिना किसी हिंसा के हुई थी, वैसे ही बाइबल में  प्रकृति को बनाने के लिए भगवान की सोच को दिखाया गया है। यह शांतिपूर्ण राज्य के विचार में कैद है: एक ऐसा समय जिसमें मसीहा शासन करेगा, दुनिया भर में शांति और एकता लाएगा: शालोम। इस राज्य के बारे में यशायाह की एक कही बात एकदम सही है (यशायाह 11:6-8):

तब भेड़िया भेड़ के बच्‍चे के संग रहा करेगा, 
और तेंदुआ बकरी के बच्‍चे के साथ बैठा करेगा, 
और बछड़ा और जवान सिंह और पाला–पोसा हुआ बैल तीनों इकट्ठे रहेंगे,
और एक छोटा लड़का उनकी अगुवाई करेगा।
गाय और भालू मिलकर चरेंगे,
और उनके बच्‍चे इकट्ठे बैठेंगे;
और सिंह बैल के समान भूसा खाया करेगा।
दूध–पीता बच्‍चा करैत के बिल पर खेलेगा,
और दूध छुड़ाया हुआ लड़का नाग के बिल में हाथ डालेगा।

यहाँ हम एक स्पष्ट कथन देखते हैं कि ईसाइयों के लिए मसीहाई राज्य में, परमेश्वर के शासन का उद्घाटन यीशु द्वारा किया गया और जिसका सारांश यीशु में दिया गया – इसमें यह खास बात होगी कि खाने के लिए जानवरों नहीं मारा जाएगा। यह प्रकाशितवाक्य (रेविलेशन) की पुस्तक का पहले ही ज्ञान दे देता है, जहाँ सभी चीजों का नवीनीकरण को इस पृथ्वी पर उतरने वाले नए जरूसालेम के रूप में दिखाया गया है (प्रकाशितवाक्य(रेविलेशन) 21-22)। भगवान का  अंतिम विचार इस सृष्टि को अपने असली रूप में लाना है, इस दुनिया को पूरी तरह से किसी और चीज़ से बदलना नहीं है। ईश्वर इस सृष्टि को महत्व देता है और इसमें मौजूद हर एक  प्राणी को महत्व देता है- एक बात जो यीशु ने कही थी वह यह है कि भगवान को पैसों के लिए बेची जाने वाली  गौरैया तक का पता रहता था I (मैथ्यू 10:29)। 

बाइबल के अनुसार दुनिया की शुरुआत और अंत का लेखा-जोखा दोनों ही शांतिपूर्ण जीवन और शांतिपूर्ण भोजन की बात करते हैं। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि ऐसे तरीके भी हैं जो जानवरों को मार के  खाने के लिए सही ठहराए जा सकते हैं और ठहराए भी गए हैं। हालाँकि, इन अनुच्छेदों की सबसे अच्छी व्याख्या ऐसे की जा सकती है कि यीशु मसीह शांति एवं स्नेह को व्यापक रूप से फैलाना चाहते थे। बाइबल कहती है कि हर मोड़ पर, यीशु ने सक्रिय रूप से, हालांकि अहिंसक रूप से, उत्पीड़न और बुराई का विरोध किया। वह उन लोगों के लिए खड़े हुए जिनके साथ भेदभाव होता था, अपने दुश्मनों से प्यार करते थे, और रोमन हिंसा और शत्रुता के सामने शांति का प्रचार करते थे।

यह किस प्रकार चीजों पर असर डालता है? यीशु के काम और जीवन के आधार पर, उदाहरण के लिए, हमारा झुकाव इस बात पर हो सकता है कि नूह और उसके परिवार को कुछ समय के लिए पतित, पापी मानवता के लिए एक अस्थायी रियायत के रूप में कुछ जानवरों खाने की अनुमति दे दी गई थी (उत्पत्ति 9:3) (जबकि भगवान ने बार-बार जानवरों को नूहिक कोविनेंट में इंसानों के साथ जगह दी है )I उसी तरह, जबकि ऐक्टस 10 में पीटर के नज़रिए के मुताबिक जानवर स्वर्ग से उतर रहे हैं और शुरुआत में यह ऐसा लग सकता है कि “अशुद्ध” जानवरों को खाना सही हैI जब हम इसे यीशु के मिशन के सन्दर्भ में पढ़ते हैं, तो हम देखते हैं कि असलियत में पीटर को सिखाया जा रहा था कि सुसमाचार (गोस्पैल) सभी लोगों के लिए है, यहाँ तक कि “अशुद्ध” रोमन सेंचुरियन के लिए भी (एक भूखे व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करने के लिए भोजन आधारित सादृश्य इस्तेमाल करने से बेहतर क्या हो सकता है? (देखें ऐक्ट 10:10)

सबसे ज़रूरी बात यह है कि यीशु और उसके द्वारा अपनाई गई नैतिकता पर ध्यान लगा कर, हम स्वयं को ईश्वर की कहानी में रख सकते हैं। हमें शांति से जीने के लिए बनाया गया है, और एक दिन हम परमेश्वर के शांतिप्रिय साम्राज्य में निवास करेंगे। इन बातों को पहचानना, और यह याद रखना कि जानवरों के बारे में हमारी बहुत सी सोच बाइबल से नहीं, बल्कि पुरानी आदतों से निकली हैं I यह बातें हमें उस हिंसा पर इमानदारी से विचार करने में मदद कर सकती है जिसमें अब हम फंस गए हैं, इसलिए नहीं कि हम खुद की या दूसरों की बुराई कर सकें, परन्तु ताकि हम उससे मुड़ सकें और भगवान के साथ मिलकर उस शांतिप्रिय साम्राज्य की खोज कर सकें। जब हम बाइबल पढ़ते हैं, तो हमारी प्रार्थना होनी चाहिए कि ईश्वर हमें जानवरों को मारकर खाने की बुराई से मुक्ति दिलाएं। 


डॉ. साइमन किटल एक ईसाई दार्शनिक हैं, जिनकी रुचि धर्म और ईसाई नैतिकता के दर्शन में है, और वे एंग्लिकन चर्च के सदस्य हैं। यह अतिथि ब्लॉग पहले सार्क्स वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ था और अनुमति के साथ यहाँ पुनः प्रकाशित किया गया है।

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