सूअर पालन क्रूर है? सूअर पालन उद्योग में सूअरों के साथ कैसा व्यवहार होता है?

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औद्योगिक पशु पालन उद्योग में जीवन छोटा, दयनीय और दर्द से भरा होता है। सूअरों और कुत्ते (जो कि इंसान के दोस्त होते हैं), उन दोनों में बहुत सी विशेषताएं एक जैसी होती हैं, जैसे दोनों में बुद्धिमत्ता होती है और और दोनों ही सामाजिक जानवर है, और यहां तक ​​​​कि खुश होने पर दोनों ही पूंछ हिलाते हैं। परन्तु सूअरों को दी जाने वाली पीड़ा बहुत भयानक है। इतनी भयानक कि अगर किसी व्यक्ति ने ऐसा व्यवहार कुत्तों के साथ किया तो उस व्यक्ति को जेल हो जाएगी।

औद्योगिक सुअर फार्म क्या हैं ?

‘फैक्ट्री फार्मिंग’ शब्द एक अत्यधिक क्रूर प्रणाली का वर्णन करता है जिसके अंतर्गत बड़ी संख्या में जानवरों का प्रजनन कराया जाता है, कृत्रिम तरीके से उन्हें वजनी व मोटा किया जाता है फिर उनका वध कर दिया जाता है, जबकि उनके भावनात्मक और शारीरिक कल्याण पर लगभग न के बराबर ध्यान दिया जाता है जैसे कि वे फैक्टरी के छोटे-मोटे से कल-पुर्जे हों। पशु उद्योग कम लागत में अधिकतम लाभ अर्जित करने वाले उद्योगों में से एक सबसे महत्वपूर्ण व्यवसाय है। इस प्रणाली के तहत, सूअर तथा अन्य पशुओ में से हर एक संवेदनशील, भावना को समझने वाला, सांस लेने वाला प्राणी है – जबकि इस प्रणाली के अंतर्गत अक्सर इन पशुओ की जैविक और मनोवैज्ञानिक सीमाओं को तोड़ दिया जाता है।

आज, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य जगहों पर लगभग हर फार्म वाले पशु को विशाल, औद्योगिक कारखानों के फर्मो के अंदर पाला जाता है।

औद्योगिक फार्म में कितने सूअर पाले जाते हैं ?

संयुक्त राज्य में कुल 75 मिलियन सूअर फार्मिंग किये जाते हैं जिसमे से लगभग 97 प्रतिशत को फ़ैक्टरी फार्म के अंदर पाला जाता है। यह इस उद्योग का नियम है और यह वह जगह है जहां से अधिकांश सूअर का मांस आता है।

क्या सुअर पालन क्रूर है?

यह अविश्वसनीय रूप से क्रूर है। सूअर विशिष्ट व्यक्तित्व और वरीयताओं के साथ सुपर स्मार्ट तथा अत्यधिक सामाजिक जानवर हैं। फ़ैक्टरी फ़ार्म में, उनकी हर प्राकृतिक प्रवृत्ति को लगभग समाप्त कर दिया जाता है और प्राकृतिक व्यवहार की हर अभिव्यक्ति को अनसुना अनदेखा कर दिया जाता है। वे कभी धूप नहीं देख सकते और न ही ताजी हवा में सांस ले सकते हैं। वे अपने सामाजिक समूहों में नहीं रह सकते हैं, घूम नहीं सकते हैं, खोज नहीं कर सकते हैं, कोई साथी या संगनी नहीं चुन सकते हैं यहाँ तक कि अपने बच्चों का पालन-पोषण भी नहीं कर सकते। उन्हें खेलने, कुछ करने या उनकी प्राकृतिक जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए कुछ नहीं दिया जाता। सभी फार्म जो कारखानों के अंतर्गत आते हैं क्रूर एवं अमानवीय हैं, जबकि सूअर इस कठोर और निर्दयी उद्योग में अत्यधिक पीड़ित हैं।

औद्योगिक फार्म में सूअर के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है?

जंगल में, सूअर अपने बच्चों को जन्म देने के लिए मीलों तक चलने के बाद अपने लायक जगह खोजते हैं जहां वह एक सुरक्षित घोंसला बना सकें। जबकि फार्म में, मादा सूअर को उनकी गर्भावस्था के दौरान पिंजरे में बंद कर दिया जाता है, और इन मातृत्व से भरी माताओं से उनके सभी बच्चों को जबरन अलग कर दिया जाता है। वे जबरन गर्भाधान और बार-बार गर्भधारण को तब तक सहन करती हैं जब तक कि उनकी प्रजनन क्षमता लगभग समाप्त नहीं हो जाती, फिर वर्षों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक पीड़ा के बाद, उन्हें हत्या के लिए ले जाया जाता है, जिनमें से अधिकतर ने शायद ही कभी इस धरती पर खुले में जीवन जिया हों।

सूअर के बच्चे के पूंछ काट देते हैं

औद्योगिक फार्म्स के अंदर, इन चंचल, और जिज्ञासु प्राणियों के पास अपनी जिज्ञासा शांत करने अथवा अपने जीवन को बेहतर करने का कोई उपाय नहीं होता। अंततः निराशा और ऊब से भरे ये प्राणी आपस में ही उलझ जाते हैं और लड़ते हुए एक-दूसरे की पूंछ या कान को कुतरने /काटने लगते हैं, जिससे अक्सर ये अपाहिज़ और चोटिल हों जाते हैं । इस पर पशुपालक इन पशुओं का तनाव और ऊब को कम करने या उन की हालत को सुधारने के उपाय करने के बजाय, उनकी पूंछ काट देते हैं और उनके दांतो को तोड़ देते हैं या घिस देते हैं वो भी बिना किसी दर्दनाशक दवा के। इन बेचारे जानवरों को बोरियत से पागल कर दिया जाता है, और फिर उन्हें इसके लिए दंडित किया जाता है।

भोजन की खोज

भोजन की खोज सूअरों के दैनिक व्यवहार का एक मुख्य अंग हैं। वास्तव में, वे घास, खसखस, बलूत का फल, सेब, केंचुए, कीड़े और यहाँ तक कि सड़ा गला भी खाना पसंद करते हैं। वे अपनी शक्तिशाली थूथनी से चट्टानों को उलट देते हैं, बल्बों और कंदों को जड़ से उखाड़ देते हैं, और अपने पसंदीदा खाने को खोजने के लिए मिट्टी को खोदते हैं। पशुपालन उद्योगों पर, उन्हें अत्यधिक संसाधित चारा खिलाया जाता है, जिसमें अक्सर सोया होता हैं जो कि जंगलो के कटान के बाद मिली जमीन पर उगाया जाता हैं या कभी कभी मछलियाँ मिलती हैं जो उन महासागरों से पकड़ कर लायी जाती हैं जिनका अस्तित्व पहले से ही संकट मे है।

जबरन प्रजनन 

मादा सूअर भी सभी जानवरों की तरह अपना साथी चुनना पसंद करती हैं, लेकिन पशुपालन उद्योगों में ऐसा मुमकिन नहीं है। एक नर सूअर लगभग हर मादा सूअर की ‘सेवा’ कर सकता है, लेकिन पशुपालक तेज़ी से आबादी बढ़ाने के लिए मादा सूअर का कृत्रिम रूप से गर्भाधान करते हैं। वे प्रत्येक जानवर की योनि में एक रॉड डाल कर उसे गर्भाशय के मुहाने तक धकेलते हैं, उसके बाद एक अभागे नर सूअर का वीर्य कार्य में लिया जाता है जो कि फैक्ट्री फार्म में कैद रहता है। और इस बेहद नाजुक प्रक्रिया के दौरान कोई पशु चिकित्सक भी नहीं होता।

पिंजरे का जीवन

यातना यही नहीं रूकती, अधिकांश मादा सूअर को 16 हफ्ते की गर्भावस्था के दौरान ही छोटे पिंजरों में कैद कर दिया जाता है, जिन्हें ‘जेस्टेशन क्रेट’/गर्भ का टोकरा कहा जाता है। मायूस हो कर वे पिंजरे के अंदर ही अपने होने वाले बच्चे के लिए घोंसला बनाने का निरर्थक प्रयास करती है क्योंकि वहाँ घोंसला बनाने का कोई सामान नहीं होता। ये माताएं अपना अधिकांश जीवन इतनी छोटी जगह में बिताएँगी जहा वे सिर्फ एक या दो इंच आगे या पीछे हो सकती हैं लेकिन मुड़ बिलकुल नहीं सकतीं। पिंजरे इतने अधिक अमानवीय हैं कि यूके, यूरोपीय संघ और अन्य जगहों पर इन्हे अवैध घोषित किया हुआ है, लेकिन बेहद हैरानी की बात है कि वे लगभग सारे अमेरिका में कानूनी हैं। हालांकि, फैरोइंग क्रेट – वह पिंजरे जहां मादा सूअर अपने बच्चों को जन्म देती हैं – दुनिया के लगभग हर देश में कानूनी हैं।

खुद की गंदगी में रहना

सूअर बहुत साफ-सुथरे जानवर होते हैं, जो केवल गर्मियों में खुद को ठंडा रखने के लिए कीचड़ में ही पड़ा रहता हैं। मगर, फैक्ट्री फार्म में उत्पन्न होने वाली गंदगी इतनी अधिक होती है कि उससे बचा नहीं जा सकता, बेचारे जानवर अपनी ही गंदगी में खड़े होने, लेटने और सोने को मजबूर होते हैं।

कंक्रीट के फर्श पर खड़े रहना और सोना

चाहे गेस्टशन क्रैट हों या बाड़ा, सूअरों को अक्सर कंक्रीट फर्श पर ही रखा जाता है। सख्त कंक्रीट फर्श पर लगातार खड़े रहने की वजह से मादा सूअर के कंधों पर भयावह दबाव की वजह से घाव बन सकते हैं, जबकि स्लेटेड कंक्रीट के फर्श जो कि इसलिए बने होते हैं ताकि उनसे सूअरों की गन्दगी नीचे गिरती रहे, इस कारण सूअरों के लंगड़े हो जाने की सम्भावना बहुत अधिक हो जाती है।

क्रूर परिवहन

कुछ महीने के होते ही, सूअरों को बूचड़खाने में ले जाया जाता है, बूचड़खाने का सफर अक्सर काफी लम्बा और लगभग सभी मौसमों में होता है। सूअर उच्च तापमान और नमी के प्रति संवेदनशील होते हैं और, क्योंकि उनका पसीना केवल उनकी थूथनी से बाहर आता है जिस कारण वे निर्जलीकरण और हीट स्ट्रोक के शिकार होते हैं। उन्हें ले जाने वाले ट्रक में पशुओ को कसकर बांधा जाता है जबकि ये ट्रक अक्सर हवादार भी नहीं होते हैं । इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि इस यात्रा में बहुत से यात्री जीवित नहीं रहते

बूचड़खानों में सूअर कैसे मारे जाते हैं?

जो सूअर इस लंबी और थकाऊ यात्रा से बच जाते हैं, मंज़िल पर पहुंच कर उनका सामना दिल दहलाने वाले अंत से होता है। कुछ को जबरन गैस चैंबर में डाल दिया जाता है जिस कारण उनकी दम घुटने से उनकी मौत हो जाती है। बाकियो को बेहोश करने के लिए, उनके दिमाग में बिजली के झटके दिए जाते हैं जो अक्सर काम नहीं करते, और फिर उन्हें उनके पिछले पैरों से लटका दिया जाता है और उनका गला काट दिया जाता है। यह सब सहन करने वाले केवल कम उम्र सूअर नहीं होते बल्कि उनकी माताओं का भी यही हश्र होता है जबकि वे पहले ही व्यवसायिक फार्म में भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक पीड़ा के कारण टूट चुकी होती हैं।

पर्यावरणीय प्रभावों

फैक्ट्री फार्मिंग न केवल सूअरों के लिए खराब है, बल्कि यह हमारे ग्रह के साथ साथ हमारे लिए भी बुरा है। सूअर फार्म से इतना अधिक गारा उत्पन्न होता है कि उसे सुरक्षित रूप से निस्तारण लगभग नामुमकिन है इसलिए, इसे विशाल गड्डो/’लैगून’ में संग्रहीत किया जाता है – जिससे उठने वाला धुआँ और भाप इन फार्म पर नियमित रूप से काम करने वाले मजदूरों की मौत का कारण बन जाता है, इस धुएं के कारण सिर्फ फार्म पर काम करने वाले मजदूर ही नहीं बल्कि आसपास रहने वाले लोगों को भी सांस सम्बन्धी समस्याएं हो जाती हैं। लेकिन अक्सर यह ”गारा” उन ”गड्ढों” से बाहर निकल आता है और जलमार्गों में मिल जाता है, जहां ये शैवाल को पनपने के लिए ईंधन का काम करता है। इन शैवाल के कारण डीऑक्सीजनेशन होता है जो जलीय जीवन को समाप्त करता है। महासागरों में भी ठीक ऐसा ही होता है जिस कारण वहां मृत क्षेत्र बन जाते हैं।

एक और गंभीर मुद्दा पानी की बर्बादी है। पशु पालन के व्यापर में पौधों की खेती की तुलना में काफी अधिक पानी का उपयोग होता है, और सूअरों को तो सबसे ज्यादा प्यासा जानवर कहा जाता है। एक औसत आकार की  80,000 सूअरों वाली उत्तरी अमेरिकी सूअर फार्म को एक वर्ष में लगभग 28 करोड़ लीटर साफ़ पानी की ज़रूरत होती है।   किसी बड़े आकार के फार्म को जिसमे दस लाख या अधिक सूअर होते हैं, लगभग एक शहर के बराबर पानी की आवश्यकता हो सकती है। जिस प्रकार पानी की समस्या अधिक व्यापक और गंभीर होती जा रही है, क्या हम इस बहुमूल्य संसाधन को बर्बाद करने का जोखिम उठा सकते हैं?

सभी मानव-जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कुल 14.5 प्रतिशत के लिए पशु व्यापार जिम्मेदार है, जो कि इस पृथ्वी पर मौजूद हर कार, विमान, ट्रक, जहाज, बस और ट्रेन के ईंधन से होने वाले उत्सर्जन से अधिक है। जलवायु को खराब होने से बचाने के लिए हमें पशु व्यापार को बंद करना होगा।

हम फार्म के सूअरों की मदद कैसे कर सकते हैं?

सूअरों को इस प्रकार की क्रूरता से बचने का सबसे अच्छा और एकमात्र तरीका यह है कि सूअर का मांस और उनके शरीर से बने अन्य उत्पादों को खाना और इस्तेमाल करना बंद करना होगा। तभी हम सूअरों के साथ हो रहे इस अत्याचार को रोक सकते हैं।

निष्कर्ष

पशु उद्योग में अधिकांश जानवरों को उनकी ज़रूरतो के अनुसार नाम मात्र की भी सुविधाएं नहीं मिलती, और जो मिलता भी हैं वह भी सिर्फ उनका वजन बढ़ाने और उनकी हत्या के समय तक उनको मात्र जीवित रखने के लिए पर्याप्त होता हैं , इस व्यवस्था में उनको कोई एक चीज़ भी अधिक नहीं मिल सकती। अगर हम चाहते हैं कि दुनिया में सहानभूति, दयालुता, निष्पक्षता और न्याय की सत्ता सर्वोपरि हो, तो हमें निश्चित रूप से पशु उद्योग को समाप्त करना होगा जिसकी शुरुआत औद्योगिक फार्म से होनी चाहिए।

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