पौधों की शक्ति: हम कैसे आहार की मदद से लम्बे समय से चली आ रही (जीर्ण) बीमारियों से लड़ सकते है

क्या हम अपने खाने की आदतों को बदल कर दुनिया की कई सबसे आम जीर्ण बीमारियों को रोक सकते हैं या उनके लक्षणों को जड़ से ख़त्म कर सकते हैं? इसका जवाब है, हाँ ! यहां हम आपको समझाना चाहेंगे कि जब हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह, कई अन्य प्रकार के कैंसर और अन्य जीवनशैली से संबंधित बीमारियों की बात आती है तब कैसे और क्यों हमारे द्वारा खाये जाने वाला भोजन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हृदय रोग और स्ट्रोक

भारत में हृदय रोग और स्ट्रोक से लोगों की सबसे अधिक मृत्यु होती है। हर साल 21 लाख से अधिक भारतीय हृदय रोग या स्ट्रोक से मरते हैं, जो भारत में होने वाली सभी मौतों का एक चौथाई भाग है। ये बीमारियाँ आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को प्रति वर्ष 7.5 बिलियन डॉलर का का खर्च उठाना पड़ता है और काम की उत्पादकता में 237 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है।

स्ट्रोक, कोरोनरी और संवहनी हृदय रोग (वैस्कुलर हार्ट डिजीज ) और परिधीय धमनी रोग/पेरीफेरल आर्टेरिअल डिजीज (पीएडी)  जैसी बीमारियों के मामले में, इस बात के पुख्ता मानवीय प्रमाण हैं कि फल, सब्जियां, फलियां और साबुत अनाज से भरपूर पौधे-आधारित आहार का सेवन करने से ऐसी जानलेवा बिमारियों को रोका जा सकता है और यहां तक ​​कि यह भोजन बीमारी के लक्षणों को जड़ से ख़त्म करने में भी बहुत फायदेमंद हो सकता है। जानलेवा बीमारियों के मामले में डेयरी, तेल और वसा की भूमिका विवादास्पद है, और मांस, मुर्गी पालन, अंडे, प्रसंस्कृत और परिष्कृत खाद्य पदार्थों की भूमिका भी हानिकारक प्रतीत होती है।

चिकित्सा पेशेवरों और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों की बढ़ती संख्या अब हृदय रोग के इलाज में साबुत वनस्पति आधारित आहार (डब्लूएफपीबी) की प्रभावशीलता को महत्व देती है, जेनV के समर्थक डीन ओर्निश, एम.डी. और कैल्डवेल एस्सेलस्टिन, एम.डी. पहले चिकित्सा पेशेवर थे जिन्होंने शोध किया और दिखाया कि कैसे जीवनशैली में व्यापक बदलाव करने से दवाओं या सर्जरी की सहायता के बिना ही सबसे गंभीर कोरोनरी हृदय रोग को जड़ से ख़त्म किया जा सकता है।

आज तक, ओर्निश और एस्सेलस्टिन दुनिया भर के लोगों को दिखा रहे हैं कि इस घातक बीमारी के जोखिम को प्रबंधित करने, जड़ से ख़त्म करने और कम करने के लिए भोजन का उपयोग कैसे करें।

सीएडी (कोरोनरी आर्टरी डिजीज), संवहनी रोग (संवहनी डिजीज), स्ट्रोक, (पेरीफेरल आर्टेरिअल डिजीज) पीएडी ,उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल जैसी संबंधित बीमारियों के जोखिम को प्रबंधित करने, जड़ से ख़त्म करने और कम करने के लिए संसाधन यहाँ पाए जा सकते हैं:

देखें: डॉ. भारत रावत ‘हृदय रोग के जोखिम को कैसे कम करें’ पर बात कर रहे हैं
पढ़ें: डॉ. एस्सेलस्टिन द्वारा लिखित ‘हृदय रोग को कैसे रोकें और जड़ से ख़त्म करें’
खोजें: शरण ऑनलाइन (स्काइप/ज़ूम) या फोन पर पोषण-आधारित परामर्श प्रदान करता है।
चेकलिस्ट: डॉ. माइकल ग्रेगर की ‘डेली डज़न’ चेकलिस्ट उन 12 खाद्य पदार्थों की पहचान की गई है जिन्हें सर्वोत्तम स्वास्थ्य के लिए हमें हर दिन खाने का लक्ष्य रखना चाहिए।

कैंसर

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, भारत में 2022 में कैंसर के 14.13 लाख से अधिक नए मामले सामने आए और 9.16 लाख लोगों की कैंसर से मृत्यु हुई।

कारण चाहे जो भी हो, कैंसर तभी बीमारी बनता है जब घातक कोशिकाएं हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) से बाहर निकल जाती हैं, यही कारण है कि कैंसर से बचने का सबसे नया तरीका है हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के स्वास्थ्य को बढ़ावा देना। जैसा कि हमने अध्याय 5 में सीखा, साबुत वनस्पति आधारित आहार हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के स्वास्थ्य को भी बढ़ावा दे सकता है।

2008 में, जेनV समर्थक डॉ. डीन ओर्निश ने ऐतिहासिक शोध प्रकाशित किया था जिसमें दिखाया गया था कि आहार और जीवनशैली में व्यापक बदलाव करने से शुरूआती चरण के प्रोस्टेट कैंसर की प्रगति को धीमा किया जा सकता है, रोका जा सकता है या जड़ से ख़त्म किया जा सकता है। यह बात इस तथ्य से जुड़ी थी कि हमारा आहार और जीवनशैली जीन (वंशाणु) अभिव्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं, तथा कैंसर और हृदय रोग को बढ़ावा देने वाले जीन (वंशाणु) को निष्क्रिय कर सकते हैं।

अपने मौलिक काम, द चाइना स्टडी में, बायोकेमिस्ट टी. कॉलिन कैंपबेल ने दिखाया था कि कैंसर का विकास आनुवंशिक नहीं होता है बल्कि मुख्य रूप से कैंसर का विकास एक पोषण-उत्तरदायी बीमारी है, और उच्च एंटीऑक्सीडेंट साबुत वनस्पति आधारित आहार का हमारे शरीर की रक्षाप्रणाली पर लाभदायक प्रभाव पड़ता है , जो की कैंसर को रोकने और कभी कभी उसके लक्षणों को जड़ से ख़त्म करने में भी मदद करता है।

नियंत्रित अध्ययनों से यह भी पता चला है कि पशु-आधारित प्रोटीन और वसा का सेवन ट्यूमर के विकास को ‘शुरू’ कर देता है, जिससे कैंसर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने प्रसंस्कृत मांस (डेली-मीट, हैम, कोरिज़ो, पेपरोनी, बेकन, सॉसेज, आदि) को ग्रुप 1 कार्सिनोजेन (ऐसा प्रदार्थ जिससे कैंसर हो सकता है) के रूप में वर्गीकृत किया है, यह धूम्रपान के समान कैंसर पैदा कर सकता है। गैर-प्रसंस्कृत मांस, जैसे गोमांस, भेड़ का बच्चा और सूअर के मांस, को भी कार्सिनोजेनिक और कैंसर पैदा करने की संभावना वाले पदार्थो में शामिल किया गया है।

इसके अलावा, डेयरी उत्पाद (दूध, दही, चीज़) प्रोस्टेट कैंसर से जुड़े हैं और जिन लोगों को लैक्टोज असहिष्णुता होती है, उनमें ये उत्पाद फेफड़ों के कैंसर, स्तन कैंसर और डिम्बग्रंथि के कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं। लाइफ आफ्टर कैंसर एपिडेमियोलॉजी अध्ययन में पाया गया कि, जिन महिलाओं में स्तन कैंसर पाया गया था, उनमें से जो महिलाएं प्रतिदिन पनीर, आइसक्रीम या दूध का एक से अधिक बार सेवन करती थीं, उनमें स्तन कैंसर की मृत्यु दर उन महिलाओं की तुलना में 49 प्रतिशत अधिक थी, जो दूध से बने प्रदार्थों का सेवन नहीं करती थीं। शोधकर्ताओं ने 52,795 महिलाओं पर अध्यन किया जो एडवेंटिस्ट हेल्थ स्टडी का हिस्सा थीं और पाया कि जो महिलाएं प्रतिदिन 1/4 से 1/3 कप गाय के दूध का सेवन करती हैं उनमें स्तन कैंसर की संभावना 30 प्रतिशत बढ़ जाती है। प्रतिदिन एक कप दूध पीने से कैंसर का जोखिम 50 प्रतिशत बढ़ जाता है, और 2-3 कप दूध पीने से स्तन कैंसर की संभावना 80 प्रतिशत बढ़ जाती है

क्या आप भोजन के माध्यम से कैंसर के प्रति अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के बारे में अधिक जानना चाहते हैं? तो इसके बारे में यहाँ जानिये :

पढ़ें: डॉ. माइकल ग्रेगर द्वारा ‘हाउ नॉट टू डाई’
देखें चर्चा : टी. कॉलिन कैंपबेल द्वारा आहार का प्रभाव कैंसर पर किस तरह प्रभाव पड़ता है 
पढ़ें: बियॉन्ड कैंसर: पौधों पर आधारित भोजन का शक्तिशाली प्रभाव
पकाएं: हाउ नॉट टू डाई कुकबुक
देखें: मैरी-बेथ की कैंसर से उबरने की कहानी
पढ़ें: द चाइना स्टडी, टी. कॉलिन कैंपबेल, पीएचडी द्वारा लिखित

मधुमेह

30 मिलियन से अधिक अमेरिकियों को मधुमेह है, और संयुक्त राज्य अमेरिका में अन्य 84 मिलियन लोगों को प्रीडायबिटीज नामक स्थिति है, जो उन्हें टाइप 2 मधुमेह के खतरे में डालती है। मधुमेह हृदय रोग, गुर्दे की विफलता और अंधेपन का कारण बन सकती है, और इस वजह से अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और नियोक्ताओं को हर साल 237 अरब डॉलर का नुकसान होता है।

अध्ययनों से पता चलता है कि उच्च वसा वाला, मानक अमेरिकी आहार खाने से हमारी कोशिकाओं के अंदर वसा के कण जमा हो सकते हैं। इन्सुलिन का काम होता है हमारी रक्तप्रवाह से शक्कर को बाहर करना और हमारी कोशिकाओं में शक्कर डाल देना, ये वसा कण इंसुलिन की इस क्षमता में बाधा डालते हैं। परिणामस्वरूप  कोशिकाओं को शक्ति देने के बजाय, ग्लूकोज़ हमारे रक्तप्रवाह में ही रहता है, जो आखिर में मधुमेह का कारण बनता है।

डब्लूएफपीबी (साबुत वनस्पति आधारित) आहार में स्वाभाविक रूप से वसा की मात्रा कम होती है, जो टाइप 2 मधुमेह को रोकने, प्रबंधित करने और यहां तक ​​कि जड़ से ख़त्म करने में प्रभावशाली है क्योंकि यह इंसुलिन को हमारे शरीर में ठीक से काम करने देता है। इसे टाइप 1 मधुमेह के लक्षणों को कम करने और प्रबंधित करने में भी लाभदायक माना गया है।

2003 में एनआईएच द्वारा एक अध्ययन में, द फिजिशियन कमेटी फॉर रिस्पॉन्सिबल मेडिसिन ने टाइप 2 मधुमेह वाले हजारों रोगियों का परीक्षण किया और पता लगाया कि ‘पारंपरिक मधुमेह आहार’ जो कैलोरी और कार्बोहाइड्रेट को सीमित करता है उसकी तुलना में पौधे आधारित आहार रक्त शर्करा को तीन गुना अधिक प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है। पौधे-आधारित आहार को कुछ हफ्ते खाने से ही, प्रतिभागियों के स्वास्थ्य में बहुत अधिक सुधार दिखा। उनकी इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार हुआ और HbA1c का स्तर कम हो गया। कुछ मामलों में, आपको पता भी नहीं चलेगा कि उन्हें कभी यह बीमारी थी।

न्यूट्रिशनल बायोकेमिस्ट, डॉ. साइरस खंबाटा को 2002 में पता चला की उन्हें टाइप 1 डायबिटीज हो गया है और वह पिछले एक दशक से टाइप 1 डायबिटीज, टाइप 1.5 डायबिटीज, प्रीडायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों को शिक्षित कर रहे हैं कि डब्लूएफपीबी आहार और व्यायाम के द्वारा कैसे रिवर्स इंसुलिन प्रतिरोध को कम किया जा सकता है, वो भी उत्कृष्ट परिणामों के साथ

आप अपनी मधुमेह या पूर्व-मधुमेह स्थिति को कैसे प्रबंधित या जड़ से ख़त्म कर सकते हैं, इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए, इन बेहतरीन संसाधनों को देखें:

देखें: पौधों पर आधारित पोषण से मधुमेह से निपटना
पकाएं: फोर्क्स ओवर नाइव्स कुकबुक
जानें: डॉ. साइरस खंबाटा के साथ मधुमेह पर कैसे काबू पाएं
पढ़ें: डॉ. नील बरनार्ड के साथ मधुमेह को कैसे दूर करें
देखें: कैसे अमेरिकी अनुभवी बॉब ने डब्लूएफपीबी आहार के साथ टाइप-2 मधुमेह को जड़ से ख़त्म कर दिया
पकाएं: मधुमेह को ठीक करने के लिए कुकबुक

अल्जाइमर रोग

अल्जाइमर रोग, एक प्रकार का मनोभ्रंश (दिमाग की क्षमता का निरंतर कम होना) है, यह एक प्रगतिशील मस्तिष्क रोग है जो लगभग 5.7 मिलियन अमेरिकियों को प्रभावित करता है। यह सभी वयस्कों में मृत्यु का छठा प्रमुख कारण है और 65 या उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए पांचवां प्रमुख कारण है। 2010 में, अल्जाइमर रोग के इलाज की लागत $159 बिलियन से $215 बिलियन के बीच अनुमानित की गई थी, और 2040 तक ये लागत सालाना $379 बिलियन और $500 बिलियन के बीच बढ़ने का अनुमान है।

हालांकि अल्ज़ाइमर या मनोभ्रंश का कोई ज्ञात इलाज नहीं है, लेकिन संज्ञानात्मक क्षरण को रोकने, इसकी प्रगति को धीमा करने और जिन लोगों को यह बीमारी हो चुकी है, उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के तरीके उपलब्ध हैं।और दुनिया भर में अल्जाइमर से पीड़ित 47 मिलियन लोगों में से अधिकांश को यह नहीं पता है कि सही जीवनशैली चुनकर वे इस विनाशकारी बीमारी के विकास के जोखिम को 90% तक कम कर सकते हैं।

इस चौंका देने वाले आँकड़े की चर्चा अक्सर अग्रणी न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर्स डीन और आयशा शेरजई, जो ‘ब्रेन हेल्थ एंड अल्जाइमर प्रिवेंशन प्रोग्राम‘ के सह-निदेशक हैं, उनके द्वारा की जाती है, जिन्होंने अपने पुरस्कार विजेता काम के माध्यम से पाया है कि हमारे तंत्रिका स्वास्थ्य (न्यूरोलॉजिकल स्वास्थ्य) को लम्बे समय तक ठीक रखने में जो कार्य सबसे कारगर साबित हुआ है, वह है कि हम प्रतिदिन किस तरह का आहार खाते हैं।

वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि अल्जाइमर मूल रूप से कचरा निपटान समस्या (हमारे भोजन के गलत चुनाव) है: हमने जो जीवन भर बिना पोषण वाला खाना अपने शरीर और मस्तिष्क को दिया है वो अब उससे लड़ने में असमर्थ हो गया है। खराब पोषण हमारे मस्तिष्क को कई तरह से नुकसान पहुंचा सकता है; वह सूजन पैदा करता है (पुराने समय से चली आ रही बीमारी का एक लक्षण), रक्त वाहिकाओं में रुकावट लाता है (हृदय रोग और स्ट्रोक का कारण), और ख़राब पोषण, हमारे मस्तिष्क को बेहतर ढंग से कार्य करने के लिए जो भी आवश्यक पोषक तत्वों हैं उनसे वंचित रखता है। हालाँकि मस्तिष्क हमारे शरीर का एक छोटा भाग लगता है लकिन यह हमारे शरीर की 25 प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग करता है और यह ऊर्जा हमे हमारे भोजन से मिलती है इसलिए हम अपने भोजन में जो भी चुनाव करते हैं उसका सीधा असर हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है 

नोबेल पुरस्कार विजेता चिकित्सक डॉ. डीन ओर्निश वर्तमान में नियंत्रित परीक्षण का निर्देशन कर रहे हैं, वह यह निर्धारित करना चाहते हैं कि क्या जीवनशैली में व्यापक बदलाव शुरुआती अल्जाइमर रोग की प्रगति को जड़ से ख़त्म कर सकता है। इस बीच, मौजूदा अध्ययनों से पता चलता है कि मुख्य रूप से पौधे-आधारित आहार खाने से अल्जाइमर का खतरा 53 प्रतिशत तक कम हो सकता है, जबकि व्यायाम करने से इस बीमारी का खतरा 40 प्रतिशत और स्ट्रोक का खतरा 25 प्रतिशत कम हो सकता है।

इसलिए “ब्रेन फ़ूड” मौजूद होने का प्रमाण बहुत आशाजनक है, और यह एक अहम कारण है की हमे साबुत वनस्पति आधारित आहार को हमारी जीवनशैली में अपनाना चाहिए। 

पढ़ें: पुरस्कार विजेता पुस्तक: द अल्जाइमर सलूशन
भाग लें: डॉ. ओर्निश के अल्जाइमर रिवर्सल ट्रायल में
प्रयास करें: मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए डॉ. बरनार्ड के सरल कदम
देखें: डॉक्टर डीन और आयशा शेरजई की मस्तिष्क स्वास्थ्य पर चर्चा


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