झींगा और श्रिम्प खाने में क्या बुराई है?

कई लोग मानते हैं कि झींगा और श्रिम्प खाना गाय, सूअर, भेड़ और दूसरे बड़े जानवरों को खाने से बेहतर है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि वे समुद्री जीव हैं और अक्सर हम उन जानवरों को कम महत्व देते हैं जो हमसे बहुत अलग हैं। ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि वे हमारे द्वारा पाले और खाए जाने वाले दूसरे जानवरों से बहुत छोटे हैं। और शायद यह इसलिए भी हो सकता है क्योंकि हम उन जीवों के बारे में कम जानते हैं। कारण जो भी हो, हमारा मानना ​​है कि यह जानवर भले ही एक दूसरे से कितने भी अलग दिखते हों, इस आधार पर हमें उनके बीच भेदभाव नहीं करना चाहिए, क्योंकि सभी जानवरों को उनका प्राकृतिक जीवन जीने का पूरा अधिकार है।

सच्चाई यह है, झींगा और श्रिम्प उद्योग पृथ्वी पर पर्यावरण की दृष्टि से सबसे अधिक विनाशकारी और नैतिक रूप से संदिग्ध उद्योगों में से एक है, और ऐसे ही कई अनगिनत कारणों की वजह से हमें झींगा और श्रिम्प खाने से बचना चाहिए।

श्रिम्प और झींगा कौन हैं?

झींगे, श्रिम्प और अन्य डेकैपोड क्रस्टेशियन (केकड़े और लॉबस्टर सहित) जटिल समुद्री जीव हैं, जिनका पारिवारिक इतिहास 50 करोड़ वर्षों से भी अधिक पुराना है। झींगा और श्रिम्प की 2,000 से अधिक प्रजातियाँ हैं, इन सभी में अलग और जटिल विशेषताएँ हैं जो झींगा और श्रिम्प को उनके व्यक्तिगत वातावरण के अनुसार जीने के लिए एकदम सही बनाती हैं।

महासागरों में समुद्री जानवरों की प्राकृतिक जीवन की संभावना लगभग 2 से 3 वर्ष होती है, लेकिन इन अनोखे जीवों को भी पशुपालन उद्योग में पाला जाता है। कैद में रखे हुए इन जानवरों को उनके जीवनकाल का केवल एक अंश ही जीने दिया जाता है।

झींगा और श्रिम्प उद्योग

झींगा, श्रिम्प और अन्य क्रस्टेशियन ( इन जीवों के मुँह के सामने दो जोड़ी उपांग (एंटेन्यूल्स और एंटीना) और मुँह के पास जोड़े वाले उपांग होते हैं जो जबड़े के रूप में कार्य करते हैं। केकड़े, झींगे, चिंराट और लकड़ी के जूँ सबसे प्रसिद्ध क्रस्टेशियंस में से हैं ) इनको जंगली जानवरों की तरह ही अकल्पनीय पैमाने पर पाला और पकड़ा जाता है। क्योंकि ये जीव छोटे होते हैं और बहुत बड़ी संख्या में पाले जाते हैं, इसलिए हम हर साल मारे गए और खाए गए जीवों की संख्या का अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। इसके बजाय, हम उनकी मृत्यु को टन में मापते हैं।

गहन जलीय कृषि

दुनिया भर में खाए जाने वाले सभी झींगों और श्रिम्पों में से अधिकांश को गर्म पानी की जलीय कृषि प्रणालियों में पाला जाता है, जो कि आमतौर पर दक्षिण पूर्व एशिया और भारत में होता है। ये प्रणालियाँ अक्सर देश के समुद्र तट या सीमाओं से दूर होती हैं, और जानवरों को ठोस बाड़ों या मीठे पानी के मानव निर्मित तालाबों में पाला जाता है। इन उद्योगों  के लिए जगह अक्सर प्राकृतिक मैंग्रोव आवासों को नष्ट करके बनाई जाती है, जिसका खतरनाक असर हमारे पर्यावरण पर होता है।

लाखों जानवरों को 100 दिन की उम्र के आस पास पहुंचते ही मार दिया जाता है पर उससे पहले इन्हे इन गहन प्रणालियों में जकड़ कर रखा जाता है, और यूरोप और अमेरिका में भेज दिया जाता है। ये उद्योग मैंग्रोव वनों और आर्द्रभूमि के प्राकृतिक वातावरण से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते हैं।

इस तरह की जलीय कृषि आम होती जा रही है क्योंकि मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर (नौका जिसके पीछे जाल लगे रहते हैं) ने स्वतंत्र रूप से रहने वाली मछलियों की आबादी की स्वतंत्रा छीन ली है। झींगा पालन पशुपालन उद्योग का एक और विनाशकारी रूप है, यह हमारी समुद्री जीवों के मांस की अतृप्त मांग को पूरा करने के लिए बनाया गया है।

नष्ट हो चुके मैंग्रोव वृक्षों के बीच झींगा पालन का उद्योग

ट्रॉलर फिशिंग

झींगा और श्रिम्प ट्रॉलर जाल, मछली पकड़ने के सबसे विनाशकारी तरीकों में से एक हैं। इन्हें छोटे क्रस्टेशियन को पकड़ने के लिए बनाया गया है, लकिन यह ट्रॉलर कुछ बड़ी मछलियों को भी पकड़ लेते है जो छोटी मछलियों को पकड़ते वक़्त दुर्भाग्य से साथ में आ जाती हैं। इनमें से कई जीव, जिन्हें उद्योग में बायकैच के रूप से जाना जाता है , वे नाव में पहुँचने से पहले ही मर जाते हैं, बाद में इन्हे फेंक दिया जाता है क्योंकि वे खाने योग्य या लाभदायक नहीं होते हैं। ट्रॉलर जाल समुद्र तल के साथ खिंचता है, इससे तल पर बने जीवों के आवास कुचल जाते हैं या दब जाते हैं क्योंकि ट्रॉलर जाल के खिंचाव से समुद्र तल पलट जाता है।

ब्रिटेन और अमेरिका में बिक्री के लिए जो झींगे और श्रिम्प बर्फ में जमा करके रखे जाते हैं, वे इस विनाशकारी ट्रॉलर द्वारा मछली पकड़ने से आते हैं।

बायकैच महासागरों में स्वतंत्रता से रहने वाले जीवों की आबादी को नष्ट कर रहा है

झींगा और श्रिम्प खाना क्यों बुरा है?

हम लोगों को झींगा और श्रिम्प खाने से बचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और इसके दो मुख्य कारण हैं: नैतिकता और पर्यावरण।

नैतिकता

ऐसे कई अध्ययन हैं जो बताते हैं कि झींगा, श्रिम्प और अन्य समुद्री जीव संवेदनशील प्राणी हैं जो दर्द और परेशानी महसूस कर सकते हैं। इसलिए, हमारा मानना ​​है कि उन्हें उनके प्राकृतिक आवासों से हटाना और भोजन के लिए मारना क्रूर और अनैतिक है।

झींगों को मांस के लिए पालना शायद और भी बदतर है क्योंकि उद्योगों ने अधिकतम उत्पादन करने के लिए जीवों की आईस्टॉक अबलेशन (आँखों के एक गेंद के आकर के भाग को हटाना) जैसी घृणित प्रथाओं का सहारा लिया है। झींगा और श्रिम्प प्रजनन के लिए अपने आस पास के वातावरण की कुछ उत्तेजनाओं पर निर्भर रहते हैं, जिससे उन्हें कैद में प्रजनन करना मुश्किल हो जाता है। किसानों ने पाया कि अगर वे मादाओं की आँखों का एक भाग निकाल दें तो वे देखने में असक्षम हो जाती हैं, जो कि जानवरों के प्राकृतिक हार्मोन उत्पादन में बाधा डालता है, और उन्हें अपने प्राकृतिक स्वभाव को अनदेखा करने और प्रजनन ना करने के लिए मजबूर करता है।

इस चौंकाने वाले और जानबूझकर दिए गए कष्ट के अलावा, झींगों को बंजर कंक्रीट के बाड़ों या तालाबों में अपना जीवन जीने के लिए मजबूर किया जाता है, जहाँ हज़ारों की संख्या में उन्हें एक साथ रखा जाता है, जिससे बीमारी होने की संभावनाएं बढ़ जाती है, और यह सब सिर्फ उनकी जान लेने के लिए किया जाता है। हमारा मानना ​​है कि किसी भी जीवित प्राणी के साथ यह व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।

झींगा उद्योग में इतनी जानें जाती हैं कि उन्हें केवल टन के हिसाब से ही मापा जा सकता है। फोटो: वी एनिमल्स मीडिया

पर्यावरण पर प्रभाव: प्रदूषण

बहुत कम लोग जानते हैं कि गहन झींगा और श्रिम्प पालन हमारे पर्यावरण के लिए कितना विनाशकारी है। यह सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले पशु पालन उद्योगों में से एक है। जब श्रिम्प या झींगों को वध करके जाल या कंक्रीट के बाड़ों से निकाल दिया जाता है, तो जिस पानी में वे रहते थे उसे आस-पास के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में छोड़ दिया जाता है। लेकिन यह पानी सड़े हुए चारे, मरे हुए और बीमार जानवरों से भरा होता है और इसमें बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया गया एंटीबायोटिक भी मौजूद होता है।

पर्यावरणीय प्रभाव: जलवायु परिवर्तन

श्रिम्प और झींगा पालन जलवायु के लिए भी बहुत हानिकारक है, इसके तीन मुख्य कारण हैं: मैंग्रोव वृक्षों का विनाश, मीथेन का उत्सर्जन, और चारे का उत्पादन।

इन मछली उद्योगों का रास्ता बनाने के लिए, मैंग्रोव वृक्षों को नष्ट कर दिया जाता है। मैंग्रोव वृक्ष हमारी पृथ्वी के कार्बन को सोकने में सबसे प्रभावी है, साथ ही वे जटिल, जैव विविधता वाले पारिस्थितिकी तंत्र भी हैं। पशुपालन उद्योगों के लिए मैंग्रोव वनों को साफ करके, हम वातावरण में भारी मात्रा में कार्बन छोड़ते हैं और भविष्य में कार्बन को सोकने की इसकी क्षमता को खत्म कर देते हैं।

दूसरी बड़ी समस्या है कि इन प्रणालियों में बहुत भारी मात्रा में मीथेन गैस का उत्पादन होता है। भोजन के जलवायु प्रभावों का अध्ययन करने वाले ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के जोसेफ पूर ने कहा: “इन सभी मछलियों का मलमूत्र और बचा हुआ  चारा तालाब के तल पर जमा हो जाता है, जहाँ ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम होता है, जिससे यह मीथेन उत्पादन के लिए एकदम सही वातावरण बन जाता है।” मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। 

अंत में, मांस के लिए पाले गए श्रिम्प और झींगों को दिया जाने वाला प्रसंस्कृत चारा भी 30 प्रतिशत सोया से बना होता है, जो अक्सर लैटिन अमेरिका के खेतों से आता है, जिनको उगाने के लिए वनों की कटाई की जाती है। जब जंगलों को काटा जाता है, तो बड़ी मात्रा में कार्बन निकलता है, और वनों की कटाई जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारणों में से एक है।

झींगा पालन के लिए मैंग्रोव वनों को नष्ट किया जा रहा है

समुद्री जैव विविधता

सोया के साथ-साथ, मांस के लिए पाले गए श्रिम्प और झींगों को दिया जाने वाला भोजन ज़्यादातर दूसरी मछलियों से बना होता है, जिन्हें बड़ी संख्या में ट्रॉलर जाल द्वारा पकड़ा जाता है। ये मछलियाँ मुख्य रूप से दूसरे समुद्री जीवों के लिए भोजन की प्रजातियाँ हैं, इसलिए उन्हें लाखों की संख्या में हटाने से प्राकृतिक खाद्य तंत्र और पारिस्थितिकी तंत्र खराब होते हैं। हम जंगली मछलियों को सिर्फ़ मांस के लिए पाली गई मछलियों का भोजन बनाने के लिए मारते हैं, जिन्हें हम फिर मार कर खा लेते हैं। हमारा मछीलियों के प्रत्रि इस व्यवहार का कोई स्पष्टीकरण नहीं हो सकता है!

निष्कर्ष

अगर झींगा और श्रिम्प खाना इतना बुरा है, तो आप यह पूछ सकते हैं कि, हम अभी भी ऐसा क्यों कर रहे हैं? हमें लगता है कि यह एक बेहतरीन सवाल है! अक्सर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लोग जीभ के स्वाद और अपने समुदाय की परम्पराओं पर निर्भर होते हैं, लेकिन हममें से कई लोगों के लिए, झींगा और श्रिम्प सहित अन्य समुद्री भोजन के वन्सपति आधारित संस्करण आसानी से बाज़ार मे उपलब्ध हैं। अपने नज़दीकी स्टोर पर जाएँ, उन्हें ऑनलाइन खरीदें, या आप घर पर भी खुदसे झींगों के व्यंजन बना सकते हैं!

वनस्पति आधारित आहार किसी भी जीवित प्राणी पर क्रूरता नहीं करता है, और यह जीवन के सभी चरणों में मनुष्यों के लिए पूरी तरह से स्वस्थ आहार साबित हुआ है। वर्त्तमान की दुनिया में पौधों पर आधारित आहार खाना सबसे आसान हो गया है क्योंकि अब यह हर जगह आसानी से उपलब्ध है।

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