क्या मछली पकड़ने पर दर्द महसूस करती हैं और क्या मछली पकड़ना क्रूर है?

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दर्द एक जटिल एहसास है। असल में विज्ञान यह साबित नहीं कर सकता है कि मछली, जानवर यहां तक कि मनुष्य भी दर्द महसूस कर सकते हैं – लेकिन आप जानते हैं कि दर्द होता है, जैसा आप इसे महसूस करते हैं, और आपको लगता है कि दूसरों को भी इसका एहसास होना चाहिए, क्योंकि या तो लोगअपने दर्द को व्यक्त करते हैं या सामने वाला इस दर्द को भाषा के माध्यम से, अन्य संचार ध्वनियों या उसके व्यवहार से समझता है।

हम जानते हैं कि जब हमारा दोस्त या हमारा कुत्ता दर्द में होता है, तो वह अपना दर्द हम पर व्यक्त करते हैं । लेकिन चूंकि मछलियां भावनाओं को व्यक्त करने में कम सक्षम होती हैं, और पानी भीतर हम रह नहीं सकते , जहां उनका यह एहसास समझा जा सकता है, इसलिए बहुत लंबे समय तक, पशु कल्याण की बातचीत से मछलियों को बाहर रखा गया है। और, अगर हम ईमानदार हैं, तो शायद हमने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए ये फैसला किया होगा कि वे दुख और पीड़ा का अनुभव नहीं कर सकते। हालांकि यह सच नहीं है, और अब विज्ञान समझ रहा है और समझा रहा है कि मछली दर्द महसूस कर सकती है, पीड़ित हो सकती है और जटिल स्तर पर भावनाओं को व्यक्त कर सकती है।

क्या मछली को दम घुटने पर दर्द होता है?

मछली पकड़ने वाले संगठन भी, दम घोट कर वध करने वाली इस प्रक्रिया को अमानवीय मानते हैं। फिर भी यह क्रूर और बर्बर प्रथा मछली फार्मों और समुद्र में जारी है। हम आपको बताना चाहते हैं कि ये कृत्य अधिक अमानवीय और निर्मम है और आप इस निर्ममता को महसूस करने के लिए सिर्फ एक बार उन मछलियों को देखें जो सांस लेने के लिए तड़प रही होती हैं।

मछली पालन उद्योग में, सैकड़ों जीवित मछलियों को बर्फ से भरे छोटे टैंकों में भर कर दम घुटने के लिए छोड़ दिया जाता है। बर्फ के पानी में ऑक्सीजन की कमी होती हैं जिसके कारण मछलियां वहां धीरे-धीरे मरने लगती हैं और शोध से पता चलता है कि यह प्रक्रिया मछली में प्रमुख तनाव हार्मोन कोर्टिसोल को बढ़ाती है। मछली भागने की कोशिश और संघर्ष करेगी, लेकिन पहुंचेगी सिर्फ फार्म के फर्श पर ,जहां या तो वो कुचल दी जाएगी या फिर मरने के लिए छोड़ दी जाएगी।

क्या मछलियों को दर्द होता है, जब उन्हें कांटा डाल कर शिकार किया जाता है ?

अध्ययनों से पता चलता है कि मछली में दर्द को व्यवहारिक रूप से समझने के लिए आवश्यक रिसेप्टर्स होते हैं और रेनबो ट्राउट (एक प्रकार की मछली) में, 22 विभिन्न रिसेप्टर्स मुंह, आंखों और जबड़े के आसपास मौजूद होते हैं। तो उस जानकारी के साथ, यह निष्कर्ष निकालना बहुत अजीब होगा कि मछली को कांटे में फंसने पर भी दर्द महसूस नहीं होता। अभी हम यह नहीं जानते कि क्या वे इंसानों या स्तनधारियों की तरह दर्द महसूस करते हैं, लेकिन इस कारण उनके दर्द का एहसास उनके लिए कम नहीं  हो जाता है।

क्या मरते समय मछलियाँ पीड़ित होती हैं?

मछली पालन उद्योग और ट्रॉलरों में मरने वाली मछलियों के व्यवहार को देखते हुए, हम ये कह सकते कि मछलियो को मरने पर पीड़ा और दुख होता है। खासकर जब उन्हें लंबे समय तक दम घुटने के लिए छोड़ दिया जाता है।

मछली दर्द कैसे महसूस करती है?

मछली में नोसिसेप्टर नामक न्यूरॉन्स होते हैं, जो शरीर में होने वाले संभावित नुकसान और बाहर से शरीर के भीतर आने वाले पदार्थों का पता लगाते हैं। जब वे दबाव या दर्द में होते हैं वे उसी ओपिओइड या प्राकृतिक दर्द निवारक का भी उत्पादन करते हैं जिसका उत्पादन स्तनधारी करते हैं। कुल मिलाकर, उनकी नोसिसेप्टिव प्रणाली की जैविकी आश्चर्यजनक रूप से स्तनधारियों के समान है। फिर भी हम स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हैं कि स्तनधारी दर्द महसूस कर सकते हैं, लेकिन मछली के प्रति समान सम्मान न रखते हुए हमारी राय अलग रहती है।

तो सबूत बताते हैं कि मछली किसी प्रकार का दर्द महसूस करने में सक्षम हैं, क्योंकि उनके पास दर्दनाक उत्तेजनाओं को संसाधित करने और महसूस करने के लिए आवश्यक जैविक उपकरण हैं। यह पूरी तरह से समझना संभव नहीं कि वे किस तरह का दर्द महसूस करते हैं ,और उनका दर्द मनुष्यों द्वारा महसूस किए गए दर्द की तुलना में कैसे अलग है – लेकिन क्या यह वास्तव में मायने रखता है?

पेरीफेरल तंत्रिका तंत्र

यह साफ़ है कि मछलियों में तंत्रिकाओं का एक पेरीफेरल जाल होता है जो मांसपेशियों और संवेदी अंगों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से जोड़ता है। तो यह माना जा सकता है कि मछली अपने पूरे शरीर में उतपन्न लगभग सभी प्रकार की संवेदनाओ को अनुभव कर सकती है और दर्द इन संवेदनाओ का मुख्य हिस्सा हो सकता है।

रिसेप्टर्स

ज्यादातर शोध में यह बात सामने आई है कि मछली में दर्द महसूस करने के लिए आवश्यक रिसेप्टर्स होते हैं। एक अध्ययन से पता चला है कि कई बिजली के झटके दिए जाने के बाद अधिकांश केकड़ों ने अपने छिपने की ख़ास जगह को छोड़ कर एक अलग स्थान में छिपना चुना।

स्नायु तंत्र

मछली में तंत्रिकाएं होती हैं जो आने वाली भावना और उत्तेजना को ग्रहण करने और समझने के लिए अपनी मांसपेशियों और अंगों को अपने मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से जोड़ती हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि हमारे पास होती हैं। तब यह मान लेना कि मछली में किसी प्रकार का दर्द महसूस करने की क्षमता नहीं होती है बहुत बचकानी बात है।

केंद्रीय तंत्रिका तंत्र

अधिकांश मछलियों में एक रीढ़ की हड्डी और एक मस्तिष्क होता है, जो मनुष्यों की तरह, तंत्रिकाओं और रिसेप्टर्स की एक पेरीफेरल प्रणाली द्वारा उनके शरीर के बाकी हिस्सों से जुड़ा होता है। इस प्रणाली की बनावट इस प्रकार बनी है कि यह दर्द सहित आने वाली अन्य उत्तेजनाओं को ग्रहण करके समझे तथा फिर प्रतिक्रिया करे।

मस्तिष्क

अधिकांश जटिल और विकसित जीवित प्राणियों को मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की आवश्यकता होती है जिससे वे उन जटिल क्रियाओं को नियंत्रित कर पायें जो क्रियाएं उन्हें जीवित रहने में मदद करती हैं। मछली के पास मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र दोनों होते हैं। इस बात की बहुत कम संभावना है कि मछलियां- दर्द को महसूस करे बिना और इससे बचने के तरीके को विकसित किये बिना, एक प्रजाति के रूप में लाखों वर्षों तक जीवित रह पाई हैं।

वैज्ञानिक प्रमाण है कि मछली दर्द महसूस करती है

इस बात के दो प्रमाण हैं कि मछली किसी प्रकार का दर्द महसूस करती है। सबसे पहले, जैविक और तंत्रिका संबंधी साक्ष्य यानी रिसेप्टर्स, तंत्रिकाओं और ओपिओइड की उपस्थिति है। दूसरी बात, व्यवहार संबंधी साक्ष्य हैं, जहां मछलियों के लिए असुरक्षित वातावरण बना कर या उनको खतरे का एहसास करा कर  उनके व्यवहार का निरीक्षण किया जाता है। दोनों तथ्यों में साक्ष्य बताते हैं कि मछली दर्द महसूस करती है।

ओपियोइड सिस्टम और एनाल्जेसिक के प्रभाव

जब हम दर्द का सामना करते हैं तो ओपिओइड हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाले प्राकृतिक रासायनिक दर्द निवारक होते हैं। अधिकांश स्तनधारियों में यही प्रणाली मौजूद होती है। मछली में ओपिओइड प्रणाली आश्चर्यजनक रूप से स्तनधारियों के समान होती है, यह इतना अधिक समान है कि मछली का उपयोग अक्सर बुरी आदतों को छुड़ाने और उनके असर को जानने के लिए किया जाता है।  फिर भी हम अभी भी यह नहीं मानते कि वे हमारे समान दर्द महसूस कर सकती हैं।

एक अध्ययन में जेब्राफिश ने संभावित खतरे के प्रति स्पष्ट व्यवहार परिवर्तन दिखाया है। वही अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि जब मछली को एनाल्जेसिक (दर्द निवारक  जैसे मॉर्फिन, एस्पिरिन या लिडोकेन) दिया जाता है, तो इन व्यवहार परिवर्तनों को पूरी तरह से रुक जाता है।

रक्षात्मक प्रतिक्रिया

कई अध्ययनों से यह प्रमाणित हुआ है कि मछलियां संभावित खतरों को पहचान कर अपने व्यवहार में परिवर्तन कर लेती हैं।

रेनबो ट्राउट और जेब्राफिश सहित कई प्रजातियों पर किए गए शोधों से पता चला है कि जब उनके होठों पर हानिकारक रसायनों का इंजेक्शन लगाया गया तो उनके व्यवहार में एक दम से बदलाव आया। रेनबो ट्राउट ने सुरक्षात्मक प्रतिक्रियाओं को प्रदर्शित किया जैसे कि उन्होंने छाती वाले पंखों को अगल-बगल  हिलना शुरू कर दिया और अपने होंठो को छोटे छोटे पत्थरो पर रगड़ना शुरू कर दिया। रेनबो ट्राउट पर मॉर्फिन का प्रयोग करने के बाद ये पाया गया कि इसके बाद इनकी सुरक्षात्मक प्रतिक्रियाओं की दर बहुत कम हो जाती है।

क्या मछली का शिकार क्रूर है?

ऐसा हमें लगता है । बुनियादी स्तर पर, हम उनके अनुभव को अपने लिए महसूस करना चाहते हैं। अगर कोई हमारे गाल या मुँह में किसी प्रकार का कांटा फंसा कर हमें हमारे घर से खींच कर बाहर निकले, तो निश्चित रूप से ये कुरता होगी , तो फिर हमारे साथ हमारे ग्रह को साझा करने वाली अन्य प्रजातियों के लिए अलग मापदंड क्यों है?

क्या हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मछली कैसा महसूस करती है?

मछली की विकास यात्रा सेंकडो – लाखों वर्ष की है , जो कि हमारी विकास यात्रा के मुकाबले बहुत ज्यादा है। अपनी इस यात्रा के दौरान मछलियां अपने कौशल में निपुण होती चली गई। अनुसंधान से पता चलता है कि विभिन्न मछली प्रजातियों ने दीर्घकालिक स्मृति, अंतर-प्रजाति सहयोग, सामाजिक बंधन, पालन-पोषण कौशल और यहां तक कि उपकरण उपयोग विकसित किया है। जबकि दर्द और भय इन विकसित कौशल के सामने बहुत सरल अनुभव हैं।

अभी तक किये गए प्रयोगों के आधार पर , हम कह सकते हैं कि मछली कैसा महसूस करती है, इस पर ध्यान देने से हमें और भी बहुत से तथ्य मिलेंगे। लेकिन फ़िर भी अगर हम इस बारे में नहीं जानते हैं कि मछलियाँ कैसा महसूस करती हैं, तो क्या यह अज्ञानता हमें उनको लाखों की संख्या में मारने का अधिकार देती है, हम किसी भी प्रकार का स्वादिष्ट वनस्पति-आधारित भोजन खा सकते हैं, मछलियों को भोजन के लिए मारने की हमें कोई आवश्यकता नहीं है।

निष्कर्ष

अब बहुत सारे वैज्ञानिक प्रमाण हैं जो बताते हैं कि मछली दर्द महसूस करती हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि यह दर्द वैसा नहीं है जैसा मनुष्य महसूस करता है, लेकिन इस बात के क्या मायने हैं ? यह तय करने वाले हम कौन होते हैं कि मानवीय पीड़ा स्वीकार्य पीड़ा का मानदंड है? जमीन पर रहने वाले स्तनधारी निश्चित रूप से दर्द महसूस करते हैं, क्योंकि हम उनकी प्रतिक्रियाओं को अधिक स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, लेकिन हमारे पास कोई सबूत नहीं है कि उनका दर्द हमारे जैसा ही है, फिर भी हम उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करते हैं। तो फिर मछलियों के लिए अलग धारणा क्यों है ?

हम मानते हैं कि हमें दूसरों को किसी भी तरह की पीड़ा देने से बचना चाहिए, भले ही हम उनकी पीड़ा को ठीक से समझ पाते हों या नहीं। ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम वीगन बनें और मछली पकड़ने वाले उद्योगों का समर्थन करना बंद करें जो हर दिन लाखों मछलियों को दुःख और पीड़ा देते हैं।

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