क्या भारतीय डेयरी उद्योग क्रूर है? डेयरी उद्योग कैसे काम करता है?

पिक्साबे ̌से देवनाथ द्वारा छवि

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भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है, और डेयरी सिर्फ एक खाद्य पदार्थ से कहीं अधिक है। यह धर्म और राजनीति से जुड़ा है, लाखों ग्रामीण परिवारों के जीने का सहारा है और इसका गहरा सांस्कृतिक महत्व है। और फिर भी, इस उद्योग के केंद्र में इतनी क्रूर और इतनी चौंकाने वाली प्रथाएं हैं कि यदि लोग इसमें शामिल पीड़ा को जानेंगे तो दूध की खपत निश्चित रूप से बदल जाएगी।

भारत के डेयरी उद्योग का इतिहास

आज भारत में दूध के सांस्कृतिक महत्व का एक कारण यह है कि दूध इतने लंबे समय से हमारे जीवन और आहार का हिस्सा रहा है।

शुरुआती समय

भारत में दूध का उत्पादन लगभग 8 हजार साल पहले का है जब ज़ेबू गायों और भैंसों को पहली बार खेती के साथ-साथ दूध के लिए पालतू बनाया गया था। वैदिक काल (1500 – 500 ईसा पूर्व) तक डेयरी हमारे आहार का अहम हिस्सा बन गया था, न केवल दूध के सेवन से बल्कि घी, छाछ और दही खाने से भी।

आधुनिक काल

औपनिवेशिक शासन से आज़ादी के बाद से, भारत का डेयरी उद्योग तेज़ी से बढ़ा है। ऑपरेशन फ्लड सरकार द्वारा 1970 में देश भर में दूध उत्पादन बढ़ाने और ग्रामीण समुदायों का समर्थन करने के लिए शुरू किया गया था। इसने श्वेत क्रांति को जन्म दिया और 30 वर्षों के अंदर इस प्रयास ने उपलब्ध दूध की मात्रा को दोगुना कर दिया। यह वर्गीस कुरियन द्वारा लॉन्च किया गया था, जिन्होंने अमूल की स्थापना की थी, यह एक विशाल डेयरी सहकारी है जो आज 36 लाख (3.6 मिलियन) दुग्ध उत्पादकों के स्वामित्व में है।

भारत में दूध का उपयोग कैसे किया जाता है?

दूध कई लोगों के लिए एक प्रमुख आहार घटक है, लेकिन यह खासकर हिंदुओं में और आयुर्वेदिक चिकित्सा में महत्व रखता है।

भोजन

भोजन एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में काफी अलग-अलग होता है और हालांकि दूध और डेयरी उत्पादों का उपयोग पूरे देश में खाना पकाने में किया जाता है, लेकिन उत्तरी भारत में व्यंजनों में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। पनीर, घी और दही सभी आहार की अहम सामग्री हैं, मुगलई परंपरा में सॉस अक्सर मलाईदार होते हैं, और डेसर्ट भी क्रीम या घी पर आधारित होते हैं।

धर्म

भगवान कृष्ण, एक हिंदू देवता हैं, यह करुणा, कोमलता और प्रेम के देवता हैं, और भारत में सबसे व्यापक रूप से सम्मानित देवताओं में से एक हैं। जब वह लड़के के रूप में थे, वह गाय के चरवाहा थे, जो शरारती होने के लिए जाने जाते थे, और अपने पड़ोसियों के यहां से मक्खन चुराया करते थे क्योंकि वह उनका पसंदीदा था।

हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि डेयरी में शुद्ध करने वाले गुण होते हैं। रसम रिवाज के लिए घी का उपयोग दीपकों में और दूध का उपयोग मूर्तियों को स्नान कराने के लिए किया जाता है। और 1995 में नई दिल्ली में, गणेश जी की मूर्तियों के दूध पीने की खबरें आई थीं, जिसे लोगों ने एक चमत्कार माना था।

दवा

डेयरी का उपयोग अक्सर आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है की इसके कई फायदे हैं जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को अच्छा रखते हैं, बीमारी के बाद स्वास्थ्य को सही करते हैं और हमारे कोशिकाओं, ऊतकों और अंगों को पोषक तत्व देते हैं। गाय के दूध का उपयोग सिरदर्द और मितली के इलाज के लिए किया जाता है जबकि गठिया के दर्द से राहत पाने के लिए घी से जोड़ों में मालिश कि जाती है।

क्या भारतीय डेयरी उद्योग क्रूर है?

दुनिया भर में हर व्यावसायिक डेयरी उद्योग इस सरल कारण से क्रूर है कि गाय दूध का उत्पादन मनुष्यों के लिए नहीं करती हैं। वे केवल ऐसा तब करती हैं जब वे गर्भवती होती हैं ताकि वह अपने बच्चे को भोजन खिला पायें। डेयरी उद्योग स्वाभाविक रूप से गर्भवती हुई गायों से थोड़ा सा दूध नहीं लेता है, वह गायों को गर्भवती करते हैं जो भारत में अनुभवहीन किसानों द्वारा गैर-बाँझ उपकरणों का उपयोग करके किया जाता है। पहले बछड़ों को उनकी माताओं से चुराया जाता है, और फिर उनका दूध भी चुराया जाता है।

दुनिया भर में, जब गायें बूढ़ी हो जाती हैं और दूध का उत्पादन नहीं कर पाती हैं, तो उन्हें आमतौर पर वध के लिए ट्रक में ले जाया जाता है।

भारत में डेयरी उद्योग खराब क्यों है?

जितनी भी गायों को दूध देने के लिए रखा हुआ होता है उन्हें उनकी नाक के माध्यम से रस्सियों से बांध दिया जाता है, जो अधिकतर बार इतनी ज्यादा कसी जाती हैं कि गायों के चमड़े से चिपक जाती हैं। एफ आइ ए पो ओ ने देश भर में जिन 451 दुग्धशालाओं की जांच की, उनमें से लगभग 80 प्रतिशत ने गायों को सख्त फर्श पर रखा हुआ था, जिससे गायों को जिससे लंगड़ापन हो सकता है।

गायों को ना मार पाने के कारण, दूध देने वाली मादाओं के नर बछड़े अक्सर सड़कों पर छोड दिए जाते हैं। जब गाय जरूरत के अनुसार उत्पादन नहीं कर पाती है तो मादाओं को भी बाहर निकाला दिया जाता है और आज भारत में अनुमानित रूप से पाँच लाख आवारा गायें हैं। इन बेचारे जानवरों को जो कुछ भी सड़कों पर मिलता है वह खा लेते हैं, जो अक्सर कचरा होता है। आंध्र प्रदेश स्थित करुणा सोसाइटी फॉर एनिमल्स एंड नेचर नियमित रूप से आवारा गायों के पेट से 70 किलो तक प्लास्टिक कचरा निकालती है।

आवारा गायों की देखभाल के लिए 5 हजार से अधिक आश्रय मौजूद हैं। यह गौशालाऐं गायों की भलाई के लिए होती हैं लेकिन हकीकत में इनकी हालात उद्योगों से भी बदतर होती है। उदाहरण के लिए, राजस्थान में, सरकार द्वारा संचालित हिंगोनिया गौशाला के 250 कर्मचारी हड़ताल पर चले गए और दो सप्ताह के भीतर 500 गायों की भुखमरी से मौत हो गई। बाद में की गई जांच में पाया गया कि जनवरी से जुलाई 2016 के बीच 8,122 गायों की खराब स्थिति के कारण उसी स्थान पर मौत हो गई थी। आज, गौशाला में 15 हज़ार गायें हैं, जिनमें से कई का उपयोग दूध के लिए किया जाता है और इस वजह से उन्हें बार-बार गर्भवती किया जाता है, जिससे गायों की संख्या और भी बढ़ जाती है।

क्योंकि कई राज्यों में गायों को मारना गैरकानूनी है, और दूसरी जगह में गायों को मारना अच्छा नही मानते हैं, जो गाय काम की नहीं रह जाती हैं उन्हें अक्सर भूख से मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।

मिलावट और खाद्य सुरक्षा

खाद्य पदार्थों से अधिक लाभ कमाने के लिए उनमें अघोषित उत्पादों की मिलावट की जाती है। यह एक खतरनाक प्रथा है। उदाहरण के लिए नमक में चूना मिलाया जा सकता है, धनिया में बुरादा और पिसी हुई मिर्च में ईंट पाउडर। 2018-2019 की भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक संघ (एफ एस एस ए आई) की रिपोर्ट से पता चला है कि उसके द्वारा जांचे गए सभी खाद्य नमूनों में से 28 प्रतिशत मिलावटी थे।

दूध में आमतौर पर मिलावट की जाती है। राष्ट्रीय दुग्ध सुरक्षा और गुणवत्ता सर्वेक्षण 2018 में दूध में हाइड्रोजन पेरोक्साइड, डिटर्जेंट और यूरिया की मिलावट पाई गई थी। नई दिल्ली में 2,880 नमूनों के 2019 के सर्वेक्षण में पाया गया कि दूध और अन्य डेयरी-आधारित खाद्य पदार्थ सबसे अधिक मिलावटी खाद्य उत्पाद थे, जिनमें 15 नमूने असुरक्षित माने गए थे। और 2020 में महाराष्ट्र में बिकने वाले 85 फीसदी ब्रांडेड दूध में मिलावट पाई गई थी।

पर्यावरणीय प्रभाव

गाय हमारे पर्यावरण के लिए एक गंभीर समस्या हैं। यह उनकी गलती नहीं है, ज़ाहिर है, यह सब इसलिए है क्योंकि इंसानों ने उनकी पैदावार बढ़ा दी है। वे कृषि उत्सर्जन के कई कारणों में से एक अहम कारण है, जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है। गाय अपने दूध से हमें इतनी कैलोरी नहीं दे पाती हैं जितनी की वे भोजन द्वारा उससे कई अधिक कैलोरी खा जाती हैं, जिससे वे बढ़ती दुनिया की आबादी को खिलाने का एक अप्रभावी तरीका बन जाती हैं। वे जलमार्गों के प्रमुख प्रदूषक भी हैं। 2019 में, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने जल प्रदूषण के कारण शहर में 31 डेयरी फार्मों को बंद कर दिया, जबकि 2,700 और का हवाला दिया।

मवेशियों की बली

जबकि गायों को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है, लेकिन भैंस जिनको दूध के लिए उपयोग किया जाता है, उन्हें पवित्र नहीं माना जाता है। कुछ मंदिरों में भैंसों और अन्य जानवरों की बलि दी जाती है। नेपाल में सबसे बड़ा पशु बलि ‘त्योहार’ गढ़ीमाई है, जहां हजारों भैंसों और कई बकरियों को मार दिया जाता है। इस घटना की जांच से पता चलता है कि जानवरों को काटे जाने के कारण उन्हें बहुत अधिक पीड़ा होती है, कुछ को मरने में 40 मिनट तक का समय लगता है।

भारतीय उद्योग तथ्य और आंकड़े

भैंसों का प्रयोग

भारत में, लगभग आधा दूध भैंसों से आता है, जिन्हें गायों की तरह ही रखा जाता है, उनको भी गर्भवती किया जाता है, और उनके बच्चों को उनसे दूर कर दिया जाता है ताकि दूध का सेवन मनुष्य कर सकें। वास्तव में, देश में बेचे जाने वाले लगभग सभी पैकेट के दूध में गाय और भैंस दोनों के दूध का मिश्रण होता है। हालाँकि, भैंसों को पवित्र नहीं माना जाता है, इसलिए जब वे कम दूध देने लगती हैं तो उन्हें मार दिया जाता है।

मवेशी क्रॉस-ब्रीडिंग कार्यक्रम

चिंता की बात यह है कि भारतीय डेयरी उद्योग ने भारतीय गायों की क्रॉस ब्रीडिंग होल्स्टीन फ्राइज़ियन और जर्सी जैसी उच्च-उत्पादक विदेशी नस्लों के साथ कर दी है। इन बड़े बच्चों को जन्म देने की कोशिश करने वाली माताओं को भारी पीड़ा होती है, जिसमें पेल्विक फ्रैक्चर, नसों को गंभीर नुकसान और अन्य चोटें शामिल हैं।

प्रसंस्करण

कई राज्यों में गायों को मारना गैर कानूनी है, और इसलिए उन्हें ‘प्रसंस्करण’ के लिए दूसरे राज्य या देश में लंबी दूरी तक ले जाया जाता है। यह यात्रा बहुत लंबी होती है गायों को तीन-चार दिनों तक ना आराम मिलता है और ना भोजन, इस यात्रा के दौरान 10-15 प्रतिशत गायें बच नहीं पातीं हैं।

2017 के हिंदुस्तान टाइम्स के एक लेख में कहा गया है: “गायों को ले जाने वाले लोग जानवरों को आगे बढ़ाने के लिए उनके जननांगों को चोट पहुंचाते हैं, उनकी दृष्टि को विकृत करने के लिए उनकी आंखों में मिर्च पाउडर रगड़ते हैं, और उन्हें विनम्र बनाने के लिए उनकी पूंछ तोड़ देते हैं। बूचड़खानों और मवेशियों के फार्मों में, जानवर को काटे जाने से पहले अचेत नहीं किया जाता है। उनकी ज़िन्दा खाल उतारी जाती है।”

डेयरी उत्पाद

1970 के श्वेत क्रांति के बाद से भारत का डेयरी उद्योग लगातार विकसित हुआ है, और देश 1998 से डेयरी उत्पादों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता रहा है। अधिकांश डेयरी को तरल दूध के रूप में बेचा जाता है, लेकिन इसे दही, मट्ठा, छाछ, लस्सी, मक्खन, पनीर, क्रीम, आइसक्रीम, मीठा गाढ़ा दूध और डेयरी मिठाई के रूप में भी बेचा जाता है।

दूध का सेवन

2020 में, भारत ने 8 करोड़ 10 लाख मीट्रिक टन से अधिक गाय के दूध की खपत की, जो किसी भी अन्य देश से अधिक थी।  यह विशेष रूप से अजीब है कि 60 प्रतिशत भारतीयों को दूध पचाने में दिक्कत होती है।

भारत में डेयरी उद्योग कितना बड़ा है?

लगभग 8 करोड़ ग्रामीण परिवार दूध उत्पादन में लगे हुए हैं, जिसका अर्थ है कि यह उद्योग बहुत बड़ा है लेकिन अभी भी पारंपरिक और खंडित है। संकेत बताते हैं कि दूध की मांग अभी भी बढ़ रही है, इसलिए या तो क्षमताएं बनानी होंगी या गायों और भैंसों की संख्या बढ़ानी होगी।

भारत में कितने डेयरी फार्म हैं?

लगभग 8 करोड़ हैं, हालांकि कुछ के पास सिर्फ एक या दो गायें हो सकती हैं, लेकिन अन्य डेयरी फार्म बहुत बड़े और बहुत सारे गायों से भरे होते हैं।

भारत में सबसे बड़ा डेयरी उद्योग कौन सा है?

गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन, जिसे अमूल के नाम से जाना जाता है, सबसे बड़ी डेयरी कंपनी है। यह एक छोटे स्थानीय सहकारी के रूप में शुरू हुई और यह एक राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध सहकारी बन गई है जो देश भर में 36 लाख उत्पादकों से दूध ले रही है।

आप सहायता करने के लिए क्या कर सकते हैं?

गायों और भैंसों की पीड़ा को रोकने और उनके पर्यावरणीय प्रभाव को समाप्त करने का सबसे अच्छा तरीका गोमांस और दूध का सेवन बंद करना है। दूध, दही और पनीर को वनस्पति-आधारित किस्मों से बदलना एक सरल कदम है जो कदम हम सभी उठा सकते हैं। वनस्पति आधारित दूध, दही और पनीर को चुनकर हम गायों और पर्यावरण की सहायता के लिए कदम बढ़ा सकते हैं।

निष्कर्ष

पूरी दुनिया में, जानवर डेयरी उद्योग में काफी पीड़ित किए जाते हैं और यह सब एक ऐसे उत्पाद के लिए जिसकी हमें आवश्यकता नहीं है, और जिसे पचाने में भी तकलीफ होती है। वनस्पति आधारित विकल्पों को अपनाकर हम अपनी परंपराओं और संस्कृति को बनाए रख सकते हैं, साथ ही एक ऐसा निर्णय ले सकते हैं जो हमारे स्वास्थ्य, जानवरों और ग्रह के लिए अच्छा है।

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