जो लोग जानवरों की खातिर शाकाहारी आहार चुनते है उन्हें लगता है कि मांस न खाना एक अच्छी बात है। लेकिन जब जानवरों की पीड़ा की बात आती है, तो एक बहुत बड़ी सच्चाई है जिसके बारे में लोगों को और जाँच पड़ताल करने की आवश्यकता है इसिलए सिर्फ मांस खाना बंद करना उपाय नहीं है, हमे जानवरों के कल्याण के लिए और गहराई से सोचने की ज़रुरत है। चीज़ जैसे डेयरी उत्पाद जानवरों के लिए अत्यधिक शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पीड़ा का कारण बनते हैं, साथ ही ये उत्पाद पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं और हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बुरे होते हैं। इन सभी नकारात्मक परिणामों से बचने के लिए, हमे पौधे-आधारित वीगन आहार ही चुनना पड़ेगा। और वीगन बनने का ये सफ़र वर्तमान की दुनिया में तो और भी आसान हो गया है!
डेयरी उद्योग के पीछे छिपी क्रूरता
चीज़ दूध से बनाया जाता है, लेकिन दूध प्राकृतिक तरीके से नहीं बनता है और वह बिना पीड़ा से बना उत्पाद नहीं है जैसा कि विज्ञापनों में दिखाया जाता है। वास्तव में, डेयरी उद्योग क्रूरता से भरा हुआ है। चूँकि माँ दूध का उत्पादन केवल अपने बच्चे के लिए करती है, इसलिए गायों, भैंसों और अन्य जानवरों को लगातार बार बार गर्भवती किया जाता है ताकि हर वक़्त दूध की उत्पति हो सके। लेकिन इस गर्भधारण से जो बच्चे होते हैं उनकी डेयरी उद्योगों को कोई ज़रुरत नहीं होती है, और इसलिए उन्हें जन्म के तुरंत बाद उनकी माताओं से अलग कर दिया जाता है, जिससे माँ और बछड़े दोनों को बहुत तकलीफ होती है। मादा बछड़ों को आम तौर पर, दूध उद्योग के इस चक्र को जारी रखने के लिए पाला जाता है, जबकि नर बछड़ों को वील (बछड़े का मांस) के लिए वध करने से पहले छोटे-छोटे पिंजरों में रख दिया जाता है। यदि बछड़े के शरीर से कोई लाभ नहीं कमाया जा सकता हो, तो उसे जन्म के समय ही गोली मार दी जाती है।
दुनियाभर के लोगों द्वारा की जाने वाली दूध और चीज़ की मांग को पूरा करने के लिए गर्भावस्था, अलगाव और मृत्यु का यह चक्र चलता रहता है। और यह तब समाप्त होता है जब माँ थक जाती है और जब उसकी दूध देने की क्षमता ख़त्म हो जाती है, इसके बाद उसे भी बूचड़खाने भेज दिया जाता है।

चीज़ छोड़ना
बहुत से लोगों के लिए, वीगन आहार अपनाने के दौरान चीज़ छोड़ना सबसे मुश्किल काम होता है। डेयरी कंपनियाँ यह बात अच्छे से जानती हैं और वे ऐसी रणनीतिपूर्ण विपणन (मार्केटिंग) इस्तेमाल करती हैं जो हमें कभी भी डेयरी उद्योग की सच्चाई का पता चलने नहीं देतीं और हम लोग चीज़ को अच्छा मान कर उसे खरीदते रहते हैं। अगर इन कंपनियों के ग्राहक देखें कि चीज़ उत्पादन में गाय और भैंस कितनी तकलीफ झेलती हैं, तो चीज़ को छोड़ना बहुत आसान हो जाएगा।
हालांकि, हमारा मानना है कि ‘चीज़ छोड़ने’ का कोई नुकसान नहीं है बल्कि इसके सिर्फ लाभ ही है। हमें यह सुकून मिलता है कि डेयरी उद्योग द्वारा माताओं और उनके बच्चों को नियमित रूप से दी जाने वाली खतरनाक पीड़ा के हम भागीदार नहीं बनते हैं। और हम अभी भी पौधे-आधारित चीज़ के साथ वह स्वाद और अनुभव प्राप्त कर सकते हैं जो स्वाद हमें पसंद है।
नैतिक और मानवीय मांस और चीज़ के पीछे का सच?
हम मांस और डेयरी कंपनियों से ‘उच्च कल्याण’ और ‘मानवीय वध’ के बारे में बहुत कुछ सुनते हैं, लेकिन सच्चाई कभी भी उद्योगों द्वारा की गई इस मार्केटिंग से मेल नहीं खाती।
दुनिया भर में की गई जाँचों से पता चला है कि जिन जानवरों को मांस के लिए इन उद्योगों में रखा जाता है, उनकी स्तिथि बहुत ही बुरी है, चाहे वे उच्च कल्याणकारी व्यवस्था में ही क्यों न रह रहे हों। जानवरों को मांस के लिए उद्योगों में रखना और फ़िर मांस के लिए उनका क़त्ल कर देना किसी भी तरीके से मानवीय और कल्याणकारी नहीं कहलाया जा सकता, और जानवरों द्वारा अनुभव की जाने वाली पीड़ा के बारे में हम सोच भी नहीं सकते हैं।
मुर्गियाँ, टर्की, बत्तख और सूअरों को उनके मांस के लिए बहुत भारी मात्रा में पशुपालन उद्योगों द्वारा रखा जाता है, और इसके परिणामस्वरूप इन मासूम पशुओं को सबसे ज़्यादा अभाव, उपेक्षा और पीड़ा का सामना करना पड़ता है। जिन मुर्गी, टर्की, बत्तख और सूअर माताओं को इसिलए गर्भवती किया जाता है ताकि उनके बच्चों को मांस के लिए मार दिया जाए, उन माताओं के लिए यह अलगाव का दर्द लगातार बढ़ता रहता है क्योंकि जन्म देने और बिछड़ने का यह चक्र लगातार चलता रहता है। और डेयरी उद्योग भी गाय और भैंस माताओं की यही बुरी हालत करता है। जैसे ही उनके बच्चे उनसे छीन लिए जाते हैं, गायों को फिर से कृत्रिम गर्भाधान के लिए तैयार किया जाता है। गायों और भैंसों के बच्चे जब ज़बरन छीन लिए जाते हैं तब ये माताएँ कई दिनों तक बुरी तरह रो-रो कर अपने बच्चों को बुलाती हैं और बहुत दिनों तक शोक मानती हैं।
डेयरी उद्योग में गायों और भैंसों को दर्द से कोई राहत नहीं मिलती है, और यहाँ तक कि उन्हें तब भी राहत नहीं दी जाती है जब उनके शरीर पूरी तरह खराब हो जाते हैं और वे उतनी मात्रा में दूध का उत्पादन नहीं कर पातीं जितना कि डेयरी उद्योग माँग करता है। डेयरी उद्योग भी उतना ही क्रूर है जितना की मांस उद्योग।

जीरो ग्रेजिंग (शून्य चराई) डेयरी
दुर्भाग्य से, डेयरी उद्योग गलत दिशा में विकसित हो रहा है। उन पशुओं के स्वास्थ्य और कल्याण के बारे में सोचने के बजाय, जिनके बच्चे और दूध डेयरी किसान छीन रहे हैं, डेयरी किसान लागत कम करने के लिए ‘ज़ीरो ग्रेज़िंग’ को अपना रहे हैं। ये ऐसे डेयरी फ़ार्म हैं जहाँ गायें अपना पूरा जीवन एक बंद जगह के अंदर, कंक्रीट के फ़र्श पर खड़ी होकर बिताती हैं, जहाँ रोबोटिक मशीन के द्वारा उनका दूध इकट्ठा किया जाता है। ये नाज़ुक पशु जो स्वाभाविक रूप से घास पर घूमते और चरते हैं, उन्हें कभी भी अपने पैरों के नीचे घास या अपने चेहरे पर सूरज की रोशनी महसूस करने का मौक़ा नहीं दिया जाता, और वे कभी भी अपने बच्चे के साथ रह नहीं पाते हैं।
अमेरिका, ब्रिटेन और अब भारत में भी शून्य-चारागाह ( जीरो ग्रेजिंग ) उद्योग तेजी से आम होते जा रहे हैं, क्योंकि मशीन का इस्तेमाल करने के बाद श्रमिकों को पैसा नहीं देना पड़ रहा है और साथ ही मशीन द्वारा ज़्यादा तेज़ी से दूध इकट्ठा किया जा रहा है और उत्पादन को अधिकतम करने का प्रयास हो रहा है – चाहे इससे उद्योग में फंसे जानवरों को कितना भी कष्ट क्यों न हो रहा हो।
डेयरी गायों और भैंसों का वध किया जाता है
अधिकांश लोग समझते हैं कि मांस एक जानवर का अंग है, और इसे प्राप्त करने के लिए जानवर का वध किया जाता है। लेकिन लोग यह नहीं समझ पाते हैं कि ‘ पशुओं का वध करना’ डेयरी व्यापार का एक स्वाभाविक अंग है। जब जानवर औद्योगिक रूप से ज़रूरी मात्रा में दूध का उत्पादन नहीं कर पाते हैं , तो उन्हें नियमित रूप से मार दिया जाता है, और उनके शरीर को गोमांस (बीफ) में बदल दिया जाता है। इसका मतलब यह है कि डेयरी के लिए पाली जाने वाली अधिकांश गायों को छह साल की उम्र में ही मार दिया जाता है, जो उनके प्राकृतिक जीवनकाल का एक बहुत छोटा अंश है। शायद सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यूरोप में एक अध्ययन में पाया गया कि दूध के लिए इस्तेमाल की जाने वाली 10-15 प्रतिशत गायें वध किए जाने पर गर्भवती होती हैं। इस उद्योग को पुरस्कृत करना तो दूर की बात है परन्तु यह कल्पना करना बहुत कठिन है कि एक दयालु समाज इसकी अनुमति कैसे दे सकता है।
चीज़ बनाम मांस का कार्बन पदचिह्न
चीज़ उत्पादन संसाधनों का बहुत अधिक मात्रा में इस्तेमाल करता है। दूध को चीज़ में बदलना मुश्किल है, एक किलो पनीर के लिए दस लीटर दूध की आवश्यकता होती है। चूंकि दूध गायों और भैंसों (या भेड़ और बकरियों जैसे अन्य जुगाली करने वाले जानवरों) से लिया जाता है, इसलिए जलवायु पर बड़ा प्रभाव पड़ता है क्योंकि जुगाली करने वाले जानवर बड़ी मात्रा में मीथेन उत्सर्जित करते हैं।
इस वजह से, चीज़ पर्यावरण के लिए सबसे ज़्यादा नुकसानदेह खाद्य पदार्थों में से एक है। वास्तव में, चीज़ से ज़्यादा खराब सिर्फ़ गोमांस, भेड़ के बच्चे का मांस और उद्योग से प्राप्त झींगे ही हैं। लेकिन अब आप पौधे-आधारित दूध के प्रभाव की बारे में जानें! सोया दूध, गाय के दूध के मुकाबले केवल एक तिहाई जलवायु प्रभाव छोड़ता है, जो सोया दूध को सबसे बेहतर और करुणामय विकल्प बनाता है।

चीज़ और मांस के पोषण संबंधी नुकसान
जब बात हमारे अपने स्वास्थ्य की आती है, तो कौन अधिक खराब है: मांस या चीज़ ? हमारे शरीर के लिए दोनों ही अच्छे नहीं हैं!
चीज़ में संतृप्त वसा, कोलेस्ट्रॉल और सोडियम की मात्रा अधिक होती है, जो हृदय रोग और उच्च रक्तचाप के साथ कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। इसमें साबुत वनस्पति आधारित आहार में पाए जाने वाले आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती है और हमें इसकी लत भी लग सकती है, जिससे कई लोगों के लिए इसे अपने आहार से हटाना मुश्किल हो जाता है। कुल मिलाकर चीज़ हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छी साबित नहीं होती है।
और न ही मांस हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। सभी प्रसंस्कृत मांस वर्ग 1 कार्सिनोजेन (ऐसा प्रदार्थ जिससे कैंसर हो सकता है) हैं, जबकि सभी तरह के लाल मांस को “संभवतः कार्सिनोजेनिक” के रूप में वर्गीकृत किया गया है। और केवल कैंसर को ही मांस के सेवन से नही जोड़ा जाता है; इस बात के बहुत सारे सबूत हैं कि मांस खाने से कई तरह की बीमारियाँ होती हैं, जिनमें हृदय रोग भी शामिल है।
निष्कर्ष
मांस और डेयरी उद्योग दोनों ही जानवरों, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचाते हैं, फ़िर भी चीज़ का उत्पादन दीर्घकालिक क्रूरता, पर्यावरणीय क्षरण और मानव स्वास्थ्य जोखिमों का एक अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है। कोई यह तर्क दे सकता है कि डेयरी उद्योग में फंसे जानवरों पर की जाने वाली क्रूरता का चक्र बहुत ही लंबा होता है और लगतार चलता रहता है इसीलिए मांस के लिए पाले जाने वाले पशुओं की तुलना में डेयरी उद्योग के पशु ज़्यादा पीड़ित होते हैं।
लेकिन सभी तरह का पशु शोषण अनैतिक और अनावश्यक है। कौनसा पशुपालन-उद्योग ज़्यादा खराब है, इस सवाल का जवाब यह हो सकता है कि क्या यह सवाल वाकई में मायने रखता है? कौनसा पशुपालन उद्योग ज़्यादा खराब है इस सवाल का कोई मतलब ही नहीं रह जाता जब वे सभी उद्योग जानवरों, मनुष्यों और जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं उसके लिए भयानक हैं – तो हम उनमें से किसी भी उद्योग का समर्थन क्यों करना चाहेंगे ?
सौभाग्य से हम सब के लिए, वर्तमान की दुनिया में, पौधे-आधारित आहार को अपनाना और पौधे-आधारित दूध, चीज़ और पनीर चुनना बहुत आसान हो गया है और बहुत ही स्वादिष्ट भी हो गया है। और जेनV उन सभी लोगों का समर्थन करने के लिए हमेशा अग्रसर है जो लोग दुनिया में सकारात्मक बदलाव और सकारात्मक अंतर लाने की इच्छा रखते हैं।